भारत के उत्तर में मनोरम प्राकृतिक छटाओं से भरपूर नेपाल का संक्षेप परिचय कुछ इस प्रकार है। भौगोलिक दृष्टि से नेपाल के अलग-अलग स्थानों की अपनी अलग ही विशेषताए हैं। उत्तर की ओर सफ़ेद मनमोहक हिमश्रृंखलाएं, दक्षिण में तराई प्रदेश के मैदान, तराई से लेकर उत्तर के हिमालयों तक सुहावना मौसम और ठंडी हवाएं, सुन्दर हरे भरे दृश्य
इन्हीं सबके बीच विभिन्न आकार में सजे हुए पहाड़, सर्पीलीकार नदियाँ, घाटियाँ, मैदानें, झरनें एवं झीलें, इन्हीं आकर्षक भू भाग में रहते हैं विभिन्न दुर्लभ वन्य जंतु यही है नेपाल का परिचय। इस कारण नेपाल प्रक्रति का क्रीडा स्थल है। नेपाल एक प्रकृति और संस्कृति का संगम स्थल है।
पुरखों द्वारा सुरक्षित पुश्तैनी मौलिक कला-संस्कृति नेपाल की विशिष्ट पहचान है। यहाँ की प्रकृति एवं संस्कृति से साक्षात्कार करने हेतु प्रत्येक वर्ष पूरे विश्व से हजारों पर्यटक आते हैं।
नेपाल के स्वदेशी तथा विदेशी पर्यटकों का दिल जीतने वाले अनेकों पर्यटन स्थल पूरे नेपाल भर हैं। एसे ही मनोरम स्थलों की सूचि में पंचासे डांडा भी पड़ता है।
पंचासे का धार्मिक महत्व
धार्मिक दृष्टि से पंचासे क्षेत्र जनसमुदाय की गहरा आस्था का केंद्र है। पंचासे धाम पौराणिककाल से ही महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। यहाँ के स्थानियों का कहना है कि,पांच पहाड़ियों से बना धार्मिक तपोभूमि होने के कारण इस स्थल का नाम पंचासे तथा पंचधाम पड़ा।
स्थानीय लोगों के अनुसार पांच पहाड़ियों वाले क्षेत्र को गुरुंग भाषा के उच्चारण में “पंचासे” कहा गया है। इस क्षेत्र की चारो ओर गुरुंग जाती की घनी बस्तियां हैं।
इस क्षेत्र में स्थित पंचासे ताल सिद्ध ऋषि मुनियों की तपोभूमि है। इस क्षेत्र को माता-पिता के भक्त श्री श्रवण कुमार की समाधि स्थल के रूप में भी जाना जाता है तथा जनश्रुति के अनुसार पांच पांडवों ने अपने वनवास के समय इस स्थान पर भी रहे।
अभी जिस स्थान पर धर्मशला बना है उस स्थान पर जिस समय ऋषि मुनि तपस्या करते थे उस समय यहाँ उनका गौशाला होने का जनविश्वास है।
इस गौशाला के लिए पानी की जरुरत को पूरा करने के लिए इसके पूरब की ओर पोखरी का निर्माण किया गया था। इस समय में उस स्थान पर बिना पानी का गढ्ढा मात्र दिखाई देता है। पत्थर के गुफा से पश्चिम की तरफ यज्ञशाला है।
पंचासे का इतिहास
नेपाल में बाइसवें- चौबीसवें राज्यकाल में यहाँ राजा का दरबार भी था उस समय यहाँ उनकी सेनाएं भी रहती थीं। प्रत्येक स्थान पर पत्थरों पर पानी एकत्रित करने के लिए ओखल बनाये गए हैं।
यहां पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार की संरचनाओं के अवशेषों का अवलोकन करने पर यह क्षेत्र एतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से भी अति महत्वपूर्ण है। यहां किसी समय महत्वपूर्ण किला होने का प्रमाण ये अवशेष देखने पर मिलता है।
किले के सैनिकों के लिए पानी भण्डारण करने हेतु चट्टानों में बनाये गए पत्थर के सुन्दर पोखरी यहाँ देखने को मिलता है।
पंचासे की भौगोलिक स्थिति
प्रशासनिक हिसाब से यह स्थान नेपाल के तिन जिले कास्की, स्यांगजा तथा पर्वत की साझा भूमि है। पर्वत जिले की मोदी गाउपालिका वार्ड नंबर 7, 8 और कुशमा नगरपालिका वार्ड नंबर 14 में इस क्षेत्र की कुछ भूमि पड़ती है।
कुछ भूमि स्यांगजा जिले की फेदीखोला गाऊंपालिका वार्ड नंबर 4, 5 और आंधी खोला गाऊंपालिका वार्ड नंबर 4 में पड़ता है। शेष भूमी पोखरा महानगरपालिका के वार्ड नंबर 22, 23 तथा अन्नपूर्णा गाऊपालिका के वार्ड नंबर 4 में पड़ता है।
इसलिए तीनों जिले कास्की, स्यांगजा तथा पर्बत के संगम स्थल में स्थित है। यह 5,775.73 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैला हुआ है। इ क्षेत्र की ऊंचाई समुन्द्र तल से 900 मीटर से 2,517 मीटर है।
पंचासे का प्राकृतिक महत्व तथा आकर्षण
मंद मंद बहने वाली ठंडी हवाएं, आँख मिचौली करता बादल तथा विभिन्न प्रजाति की चिड़ियों के संगीत से पंचासे में भूस्वर्ग की अनुभूति होती है।
पंचासे का मुख्य आकर्षण रमणीय वातावरण एवं मनमोहक प्राकृतिक दृश्य है। यहां का महत्व मेरी नजर में प्राकृतिक सुन्दरता है।
मौसम साफ होने पर यहाँ से उत्तर की ओर सफ़ेद हिम श्रृंखलाओं का अवलोकन किसी भी प्रकृति प्रेमी के लिए अविस्मरणीय होता है।
यहां पहाड़ी पर दृश्यावलोकन के लिए व्यू टावर और एक हेलीपैड बनाया गया है। यहाँ से 8000 मीटर से भी ऊँची धौलागिरी, अन्नपूर्ण हिम श्रंखला, लम्जुंग हिमालय मनास्लु, गणेश हिमालय और गौरीशंकर हिमालय नंगी आँखों से देखकर पहचाना जा सकता है।
इन हिम श्रृंखलाओं से आने ठंडी हवा अपने साथ जल भरकर लाती है और पंचासे पहाड़ी के ऊपर कभी वर्षा करती है तो कभी बर्फवारी।
माछापुछ्रे हिमालय का शिखर यहाँ से ज्यादा स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। आसपास के गॉंव घर ही नहीं बल्कि आसपास के जिले के मुख्य शहर, बस्तियां एवं सम्पूर्ण पोखरा घाटी भी यहां के टांप से देखा जा सकता है।
पंचासे पहाड़ की चोटी से दिखने वाली हरियाली, भिन्न- भिन्न आकार के पहाड़ एवं खेती का रमणीय दृश्य वास्तव में मन मोहक लगते हैं। यहाँ से दृश्यावलोकन करने पर प्रत्येक प्रकृति प्रेमी को अलौकिक अनुभूति प्राप्त होती है।
यह क्षेत्र जितनी अध्यात्मिक तथा धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, उतनी ही जैविक विविधता से भरपूर है। चारों ओर की मानव बस्ती तथा यहाँ की विविध संस्कृति के कारण यह क्षेत्र एक पर्यटन स्थल के रूप में परिचित है।
पंचासे से जुड़े महाभारत और रामायणकालीन प्रसंग
रामायण और महाभारत कालीन कुछ प्रसंग इस क्षेत्र से जुड़े होने का लोगों का विश्वास है। इसी क्रम में यह क्षेत्र प्रसिद्ध च्यवन ऋषि का तपोभूमि होने का जनविश्वास है।
माता पिता के परम भक्त श्रवण कुमार के ऊपर दशरथ जी द्वारा बाण चलाने की कथा भी यहां से जुडी हुई है। पंचासे पहाड़ी से जुड़े हुए दक्षिण तरफ स्यांगजा जिले के वाल्सिंग गाँव में श्रवण कुमार का मंदिर है।
इस मंदिर के अन्दर श्रवण कुमार की पत्थर की मूर्ति है। विश्वास किया जाता है किइसी स्थान पर श्रवण कुमार ने अपना देह त्यागा था। मंदिर से करीब 300 मीटर पूरब दिशा में स्थित तालाब में पानी भरने के क्रम में श्रवण कुमार के ऊपर बाण प्रहार होने का जन विश्वास है। इस लिए इस तालाब को श्रवण ताल कहा जाता है।
इस क्षेत्र के विभिन्न धार्मिक स्थलों का पूजा पाठ और परिक्रमा करने से मन की सभी मनोकामनाए पूर्ण होने का धार्मिक विश्वास है। इसलिए इस क्षेत्र में विभिन्न पर्वों और विशेष तिथियों में भक्तों की काफी चहलपहल होती है।
पंचासे के महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल
- पंचायन देवता का मंदिर
यहां पहाड़ी पर पंचायन देवता का मंदिर है तथा यहाँ आने वाले भक्तों के लिए धर्मशाला भी बनाया गया है। मंदिर के नजदीक ही पत्थर की गुफा, पानी का कुवां और कुटिया के अवशेष हैं। इस स्थान में पानी का श्रोत न होने के कारण नीचे से ढोकर लाया हुआ पानी भण्डारण किया जाता था, यह अनुमान लगाया गया है।
- सिद्ध बाबा मंदिर
इस पंचधाम में स्थित दूसरी महत्वपूर्ण सम्पदा है, सिद्ध बाबा। एक पेड़ के खोखले स्थान में सिद्ध बाबा का पूजा किया जाता है। सिद्ध बाबा के नजदीक मंदिर बनाकर पशुपति का स्थापना किया गया है।
जनविश्वास के अनुसार सिद्ध बाबा से मन्नत मागने पर सभी मनोकामनाए पूर्ण होती है। अपनी मन्नत पूरी होने के बाद सिद्ध बाबा को घंटी चढाने का प्रथा है।
इसी प्रथा के कारन सिद्ध बाबा को चढ़ाये गए हजारों घंटियाँ पेड़ पर टांगी हुई हैं। यहाँ चढ़ाई हुई नयी घंटियों से यह अनुमान लगया जा सकता है कि हाल ही में उनके कितने भक्तों की मनोकामनाए पूर्ण हुई।
सिद्ध बाबा परिसर में बलि देने के लिए बराह स्थान भी बनाया गया है। इसी परिसर में ब्रह्म, झांकरी, भूमे और नाग इत्यादि विभिन्न देवी देवताओं की पूजा होती है।
- शांति बुद्ध स्तूप
स्थानीय लोगों के सहयोग में पंचासे में सिद्ध बाबा मंदिर के समीप शांति बुद्ध स्तूप का निर्माण किया गया है। पंचासे क्षेत्र में बौद्ध धर्मावलम्बियों की घनी बस्ती होने के कारन यह स्तूप का निर्माण किया गया है। बौद्ध धार्मिक सम्पदा की दृष्टी से भी यह क्षेत्र समृद्ध है।
बाला चतुर्दशी के दिन इस स्तूप में बौद्ध धर्मावलम्बी एकत्रित होकर गृह शांति और विशेष पूजा करते हैं।
- आर्थर गुम्बा
पोखरा क्षेत्र का सबसे पुराना बौद्ध गुम्बा पंचासे पहाड़ी से सटी हुई पर्वत जिले के आर्थर डांडा खर्क गाँव में है। बिक्रमी संवत 1836 ( सन 1779) में स्थापित इस गुम्बा का नाम संग नांग दोरजे छोलिंग गुम्बा है।
इसके आलावा इस गुम्बा को स्थानीय लोग डांडा खर्क मोनेस्ट्री तथा आर्थर गुम्बा भी कहते हैं। इस गुम्बा में लामा गुरु द्वारा अपने शिष्यों को धार्मिक अनुष्ठान सिखाया जाता है तथा गुफाओं में रखकर लामा बनाने का कार्य भी किया जाता है। गुम्बा में मिटटी से निर्मित बुद्ध के पुराने मूर्तियाँ हैं।
ढलौट (एक से अधिक धातुओं को पिघलाकर बनाई गई), तांबा तथा पित्तल से बनी एवं सोने की पतली लेप लगाईं हुई मूर्तियाँ भी हैं। गुम्बा की दीवारों में बुद्ध के सुन्दर चित्र बनाये गए हैं।
- पंचासे झील
इस पहाड़ी के बीच में स्थित झील पर्यटकों एवं पद यात्रिओं के लिए आकर्षक का केंद्र है। स्थानीय श्रद्धालुओ के लिए यह झील एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। बाला चतुर्दशी सहित अन्य विभिन्न पर्वों पर इस झील में स्नान करने ले लिए श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है।
इस झील के बीच में ताल बाराही मंदिर है। इस झील में पानी आने वाला स्रोत एवं इस झील से पानी निकासी का स्थान दिखाई नहीं देता है फिर भी इस झील में पानी हमेशा रहता है।
जंगल के बीच में स्थित इस झील में किसी भी पेड़ का पत्ता पानी में गिरने पर चिड़िया उस पत्ते को निकाल कर फेक देती हैं इस लिए चारों ओर घना जंगल होने के बाबजूद इस झील में एक भी पत्ता दिखाई नहीं देता है झील साफ रहती है।
इस झील के उत्तर की ओर पुराना झील था जो अब सूख चुका है। जहाँ पर पुराना झील था उसी के नजदीक एक धर्मशाला बनाया गया है। इस क्षेत्र में पांच झीलें हैं। पहाड़ी के किनारे- किनारे जल संकलन के लिए बनाये गए तालाब भी दिखाई देते हैं।
पंचासे का विशेष मेला एवं पर्व
बाला चतुर्दशी मेला – यह क्षेत्र गण्डकी प्रदेश का ही एक धार्मिक पर्यटन स्थल है। यहाँ के सिद्ध बाबा के मंदिर में प्रत्येक वर्ष मार्गशीर्ष मास कृष्ण चतुर्दशी के दिन बाला चतुर्दशी का मेला लगता है।
इस दिन भक्तों की भीड़ रहती है। इस दिन श्रद्धालुगण पंचासे ताल में स्नान कर शतबीज बाला चतुर्दशी के दिन अपने पितरों के मोक्ष के लिए शिव मंदिर में धान के एक सौ दाने या फूल में मिलाकर मक्का, गेहूं, जौ, हल्दी तथा कंगनी छिड़कने की प्रथा} छिड़कते हुए सिद्ध बाबा की पूजा अर्चना करते हैं।
बाला चतुर्दशी के दिन प्रत्येक वर्ष यहाँ हवन भी किया जाता है। इस प्रकार शतबीज छिड़कने के बाद सिद्ध बाबा की पूजा अर्चना करने से अगले जन्म में खाने पीने की कोई कमी नहीं रहती है, एसा जन विश्वास है।
इस मेले में कास्की, स्यांगजा, पर्वत और बागलुंग आदि जिलों के श्रद्धालुगण आते हैं। इसके आलावा शिवरात्रि, रामनवमी और फाल्गुन पूर्णिमा आदि पर्वों पर भक्तों की उल्लेखनीय उपस्थिति रहती है।
हिन्दू और बौद्ध धर्मावलम्बीयों का संगम स्थल यह क्षेत्र धार्मिक धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक है।
पंचासे क्षेत्र में पाई जाने वाली वनस्पतियाँ
सुनाखरी फूल (Orchids) की राजधानी है यह क्षेत्र, अनुसन्धान कर्ताओं ने यहाँ 125 प्रजाति की सुनाखरी फूल की पहचान की है। पंचासे में पाई जाने वाली सुनाखरी फुल की प्रजातियाँ नेपाल के अन्य स्थान पर नहीं पाई जाती है।
पांच पहाड़ियों से मिलकर बना इस क्षेत्र में यहाँ पाई जाने वाली वनस्पति भी मुख्य रूप से पांच प्रकार की है। 1) अखरोट, 2) बुरांश, 3) उतीस, 4) देवदार, 5) बांज। इसके आलावा 589 प्रजाति के फूल, 150 दुर्लभ औषधियुक्त जड़ी बूटियां, 98 प्रकार की फर्न और 8 प्रकार की रेशेदार वनस्पतियां मिलती हैं।
पंचासे क्षेत्र में पाए जाने वाले वन्य प्राणी
वन तथा जंगल प्रकृति के बहुत से संतानों का घर है। ठंडी शीतल हवा पानी वाले इस क्षेत्र को अपना निवास स्थान बनाकर हिरन, मृग, रतुआ(Muntjac), सियार, बन्दर, खरगोश, साही, चीता
दुर्लभ हिमालयन काला भालू, जंगली सूअर और जंगली मुर्गी आदि 19 प्रकार के जंगली स्तनधारी जानवर रहते हैं। पंचासे क्षेत्र विभिन्न 260 प्रजाति की स्थानीय एवं प्रवासी पक्षियाँ रहतीं हैं।
पंचासे एक महत्वपूर्ण जलग्रह क्षेत्र के रूप में
पंचासे की पहाड़ियां इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण जलग्रह क्षेत्र के रूप में प्रसिद्ध है। अपनी छाती चीरकर यहां के पहाड़ियों ने सम्पूर्ण जीवधारियों के लिए अति आवश्यक ठंडा जल बहाया है।
यहां की पहाड़ियों से उत्पन्न होने वाले अनेकों जलस्रोत एवं नदियों के कारण इस क्षेत्र में खेती, पशुपालन तथा मानव जीवनयापन सहज हुआ है।
पोखरा फेवा ताल का जल श्रोत हर्पन खोला नदी का उद्गम स्थल पंचासे है। आंधी खोला नदी का उद्गमस्थल भी पंचासे ही है। यहाँ से निकलकर आंधी खोला नदी स्यांगजा जिले के खेत खलिहानों को सिंचाई करते हुए
जिव जंतुओं की प्यास को मिटाते हुए काली गण्डकी नदी में मिल जाती है। रति खोला, जहरे खोला, सेती खोला आदि सहित यहाँ से छोटे बड़ी नदियाँ निकलती हैं
यहां से उत्पन्न होने वाले नदी, नाले एवं झरनों का ठंडा जल आसपास के गांवों में पेयजल की आपूर्ति करते हैं।
पंचासे का विकास
यहां का विकास के लिए यहाँ की स्थानीय जनताओं का कार्य उल्लेखनीय है। विभिन्न गांवों से यहां पहुँचने के लिए स्थानीय जनताओं ने पत्थर के पदमार्ग बनाया है।
अधिकांश स्थानों से इस स्थान में पहुंचने के लिए पत्थर का सीढ़ीदार मार्ग संपन्न हो चुका है। यहाँ का physical infrastructure में जनता का सहयोग अधिक है।
पंचासे क्षेत्र में किस समुदाय के लोग रहते हैं?
यहां विभिन्न फूलों की तरह इसे आस पास की मानव वस्तियाँ भी बगीचे में खिले रंगीन फूलों की तरह विभिन्न जातियां का निवास स्थान है।
भदौरे, तामंगी, सिद्धाने, चित्रे, आर्थर डांडाखर्क और भंज्यांग आदि गाँव में गुरुंग समुदाय के लोग रहते हैं। बाणसिंग, बांगे और रामजा आदि गाँव में ब्राह्मण और क्षत्रिय समुदाय के लोग रहते हैं। दोनों तरफ के समुदाय में में दलित समुदाय के लोग भी रहते हैं।
यहाँ के लोगों का मुख्य पेशा एवं रोजगार
गुरुंग संस्कृति, ग्रामीण जीवनशैली और परंपरागत कृषि प्रणाली से ये गाँव समृद्ध हैं। यहाँ के लोगों का मुख्य पेशा कृषि एवं पशुपालन है। यहाँ के किसान धान, गेहूं, मक्का, मंडुवा, आलू और सब्जियां उगाते हैं।
गाई, भैंस. भेड़ बकरियां पालते हैं। पिछले कुछ वर्षों से किसान लोग मधुमक्खी पालन भी करते आ रहे हैं। लेकिन लगातार पलायन से गाँव में जनशक्ति का आभाव बढ़ता ही जा रहा है।
यहां घूमने वाले पर्यटकों की संख्या लगातार बढ़ने के कारण यहाँ के लोगों का वैकल्पिक पेशा पर्यटन व्यवसाय बनता जा रहा है।
पर्यटक आने पर उन्हें अपने ही घर में मेहमान बनाते हैं। घर में जो भी है स्थानीय व्यंजन बनाकर खिलाते हैं। अर्थात होम स्टे पर्यटन सेवा प्रदान कर रहें हैं।
यह स्थान पद यात्रियों के लिए विशेष क्यों हैं?
जो पर्यटक पदयात्रा करना चाहते हैं उनके लिए पंचासे एक बहुत बढ़िया स्थान है। अनेक प्रकार की वनस्पतियाँ एवं हरियाली चारों तरफ की मानव बस्ती, गगनचुम्बी हिमालयों का विहंगम दृश्य आहा यहाँ आने वाले जो कोई भी इन्हीं को निहारते नहीं थकते हैं।
पंचासे घूमने का सही समय कब है?
हवा पानी – शीत ऋतू में यहाँ बर्फ पड़ती है तथा ग्रीष्म ऋतू में यहाँ अत्यंत शीतल किस्म का वातावरण रहता है।
यहां घुमने का सबसे अच्छा समय सितम्बर, अक्टूबर और नवम्बर तथा फरवरी मार्च और अप्रैल है,क्योकि इस समय मौसम एकदम साफ रहता है मनोरम हिम श्रृंखलाओं के दृश्यावलोकन किया जा सकता है।
मार्गशीर्ष मास कृष्ण चतुर्दशी दिन प्रत्येक वर्ष यहाँ मेला लगता है इस दिन भी आप यहाँ आ सकते हैं।
पंचासे कैसे पहुंचे ?
भारत से आने वाले पर्यटक सबसे पहले गोरखपुर के रास्ते सोनौली बॉर्डर पार कर बेल्हिया बस पार्क आयें फिर वहां से बस में बैठकर सिद्धार्थ राजमार्ग होते हुए पोखरा आयें।
भारत से नेपाल कैसे जाएँ इसकी सम्पूर्ण जानकारी निचे के लेख में पढ़िए
यहां घूमने के लिए पर्वत जिला एवं स्यांगजा जिले के रास्तों का प्रयोग भी किया जा सकता है। लेकिन पोखरा के फेवा ताल से होते हुए जाने वाला मार्ग अधिक सरल और सुविधायुक्त है। जिसका जिक्र मैं यहाँ कर रहा हूँ।
पोखरा से तराई क्षेत्र में जाने के लिए सबसे छोटा मार्ग है सिद्धार्थ राजमार्ग। इस मार्ग से यात्रा कर स्यांगजा, पाल्पा होते हुए बुटवल पहुंचा जा सकता है। पोखरा से 25-30 किलोमीटर यात्रा करने के पश्चात स्यांगजा नाग डांडा पड़ता है।
यहाँ श्रवण कुमार की प्रतिमा है। नाग डांडा से पश्चिम की ओर जाने वाले मार्ग से यात्रा करने पर जुगले बाजार आता है। इस मार्ग से पंचासे और अंधा अंधी पहुंचा जा सकता है।
जुगले बाजार से करीब एक किलोमीटर की दुरी पर सेपथ नाम का स्थान पड़ता है। यहाँ से सड़क दो भागों में विभाजित हो जाती है। हमें दाहिने तरफ के मार्ग से यात्रा करना है।
यही मार्ग हमें पंचासे पहुंचाएगी। सेपथ से आधा घंटा गाडी में यात्रा करने के पश्चात बांगसिंग गॉव आता है। यहाँ पहुँचने पर भालू लेक से आने वाली एक दूसरी सड़क का संगम है। भालू लेक से यह स्थान काफी दूर पड़ता है।
सबसे आसान रास्ता पोखरा से जिस रास्ते हम जा रहे हैं। स्यांगजा के सेपथ से 2 घंटे की यात्रा के पश्चात पंचासे भंज्याग पहुंचा जा सकता है। पंचासे भंज्यांग पोखरा महानगरपालिका के अंतर्गत आता है।
यहाँ से पोखरा 28 किलोमीटर की दुरी पर है। पंचासे भंज्यांग से पत्थर के सीढ़ीदार पंचासे सुनाखरी पद मार्ग पर डेढ़ घंटे की पैदल यात्रा के पश्चात पंचासे आता है।
इसके आलावा आप अनेकों परंपरागत रास्तों का प्रयोग कर यहाँ पहुँच सकते हैं। जिस रास्ते से भी पंचासे पहुँचने पर एक अलग ही अलौकिक ही स्थान में पहुँचने की अनुभूति होती है।
कहाँ ठहरें?
पंचासे भंज्यांग में अनेको होटल और कॉटेज हैं। पर्यटक अपनी इच्छा अनुसार किसी भी होटल में रुक सकते हैं। यहाँ आप कैम्पिंग भी कर सकते हैं।
इस क्षेत्र के बहुत से गांवों में होम स्टे हैं। कास्की जिले की तरफ सिदाने गाऊं तथा भदौरे गॉंव में होम स्टे हैं। पर्वत जिले की तरफ अर्थर डांडाखर्क और चित्रे गाँव में होम स्टे की व्यवस्था है। स्यांगजा जिले में बांगे गाँव में होम स्टे हैं। आप किसी भी क्षेत्र से आयें यहाँ इसके चारों तरफ के गाँव में होम स्टे हैं।
यहां आप पूजा पाठ तथा घूम फिर कर सकते हैं, लेकिन अन्य वन जंगल या पर्यटन स्थलों की तुलना में यहाँ विशेष नियमों का पालन करना पड़ता है क्योंकि यह संरक्षित वन क्षेत्र है।
यह स्थान ओझल में क्यों है?
इस क्षेत्र के विकास के लिए महत्वपूर्ण प्रचार प्रसार ही है। अभी तक यह क्षेत्र की उचित प्रचार प्रसार की कमी के कारण बहुत से पर्यटकों के लिए सुन्दर पंचासे ओझल में है। यह पोखरा से एकदम नजदीक है।
पंचासे प्रकृति का वरदान है। एक सुंदर उपहार है। प्राकृतिक सुन्दरता से भरपूर इस क्षेत्र धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी समृद्ध क्षेत्र है।
गुरुंग समुदाय का मूल संस्कृति, बौद्ध परंपरा और हिन्दू आस्था की प्रथाएं इन सब का एक साथ साक्षात्कार पंचासे में ही होता है। इस पहाड़ी के ऊपर जाने पर हिमालय की गोद में होने का अहसास होता है।
यह महत्वपूर्ण स्थान एक छुपा हुआ पर्यटन स्थल है। इस स्थान में आने वाले हरेक व्यक्ति पद यात्रा का रोमांचक क्षण की अनुभूति कर सकते हैं।
इस स्थान के बारे में पोखरा आने वाले बहुत से पर्यटक अनभिज्ञ हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए मैंने नेपाल के छुपे हुए एक सुन्दर पर्यटन स्थल पंचासे के बारे में बताया है। आशा करता हूँ की आप भी यहां कीयात्रा का भरपूर आनंद लेंगें धन्यवाद।
FAQ
Q. पंचासे की पैदल चढ़ाई कितनी है?
Ans – 2.3 किलोमीटर
Q. पंचासे क्यों प्रसिद्ध है?
Ans – नेपाल के संपूर्ण हिमालय जिनकी उंचाई 8000 मीटर से भी अधिक है उनको यहां से एक साथ नंगी आंखो से देखा जा सकता है
Q. पोखरा से पंचासे कितना किलोमीटर है?
Ans – 34 किलोमीटर
Q. पंचासे पहुंचने पर रात्रि विश्राम कहां करें?
Ans – भंज्यांग में रात्रि विश्राम करने के लिए अनेक होटल एवं लांज हैं।
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