नेपाल के कर्णाली प्रदेश में जाजरकोट जिला अवस्थित है। भौगोलिक रूप से यह मध्य पहाड़ी क्षेत्र में पड़ने वाला उच्च पहाड़ी जिला है। जाजरकोट जिले में अनेकों एतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक पर्यटन स्थल हैं। प्रचार की कमी के कारण ये सब ओझल में हैं। आज हम जाजरकोट का पहला 98 साल पुराना एतिहासिक मटेला पुल के बारे में बताएँगे।
मटेला पुल निर्माण का इतिहास?
मटेला पुल निर्माण से पहले जाजरकोट जिले के निवासियों को रुकुम, सल्यान तथा नेपालगंज इत्यादि स्थानों में जाने के लिए कष्ट का सामना करना पडता था। भेरी नदी के ऊपर कोई भी पुल नहीं था उस समय के लोग लकड़ी की नाव में बैठकर नदी के इस पार और उस पार जाते थे।
इन्ही नाव में रखकर अपने दैनिक जीवन में उपयोग होने वाली वस्तुओं को नदी के इस तरफ तथा उस ओर ले जाया करते थे। लकड़ी की नाव भरोसेमंद नहीं होती थीं। कभी कभार नदी में उलट जाती थी इससे बहुत से लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। बरसात के समय में तो यह नाव भी नहीं चलती थी क्योंकि इस समय नदी बरसात के जल से उफान पर रहती है। इस बात से जाजरकोट के राजा की पुत्री बालकुमारी शाह दुखी थीं।
विवाह के पश्चात राणा प्रधानमंत्री चन्द्र शमशेर की छोटी रानी बालकुमारी शाह ने अपने मायके पक्ष जाजरकोट के लोगों को इस असुविधा से छुटकारा दिलाने के लिए राणा दरबार के समक्ष जाजरकोट में पुल बनाने का आग्रह किया। बालकुमारी रानी चंद्र शमशेर की अत्यंत प्रिय रानी थीं। फिर भी अपनी आग्रह की सुनवाई में देरी हुई तो इन्होंने भूख हड़ताल शुरू की। अंततः चंद्र शमशेर राणा मटेला नामक स्थान में पुल बनाने के लिए राजी हुए।
कौन थे चन्द्र शमशेर जंगबहादुर राणा?
नेपाल में राणाकालीन तेरहवें प्रधानमंत्री श्री चन्द्र शमशेर जंगबहादुर राणा थे। इनका शासनकाल सन 1901 से सन 1929 तक रहा। नेपाल में लगभग 28 सालों तक प्रधानमंत्री रहे।
मटेला पुल की विशेषता
नेपाल में आजकल बनने वाले पुल 5-10 साल के अंदर ही जंग लगकर क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। लेकिन नेपाल के राणा प्रधानमंत्री चन्द्र शमशेर जंगबहादुर राणा द्वारा सन 1925 में निर्मित मटेला का पुल 98 सालों तक भी जैसा का तैसा है। इस कारण जाजरकोट जिले के भेरी नगरपालिका वार्ड नंबर 11 मटेला में भेरी नदी पर बना यह पुल नेपाल की विकास योजनाओं का एक उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है। 90 मीटर लम्बा यह पुल नेपाल का प्रथम झुला पुल है। पूर्ण रूप से लोहे का बना मटेला पुल में अभी तक जंग नहीं लगा है। पिलर मजबूत हैं और इस पुल में कोई क्षति नहीं पहुंची है।
मटेला पुल की सामग्री तथा निर्माण प्रकिया
मटेला पुल निर्माण के लिए निर्माण सामग्री का उत्पादन तथा पुल बनाने की जिम्मेदारी Scotland UK का शहर Aberdeen में स्थित एक कंपनी जॉन एम हेन्डरसन एण्ड कोपरेसन लिमिटेड को सौंपा गया। इस पुल का सर्वे united kingdom के इंजिनियर ने किया था तथा इस पुल का डिजाईन नेपाल के प्रथम इंजिनियर कुमार नरसिंह राणा ने किया था।
मटेला पुल की सामग्री को UK से जाजरकोट तक कैसे लाया गया?
भौगोलिक रूप में नेपाल से 7000 किलोमीटर दूर Scotland से पुल निर्माण की सामग्री को भारत के कोलकाता तक शिप से लाया गया । कोलकाता से उत्तरप्रदेश के बहराइच तक रेलवे में लाया गया। उसके बाद भारतीय सीमा क्षेत्र कोइलावास तक भारतीय मजदूरों ने ढोया फिर यहाँ से जाजरकोट के मटेला तक लाने में तराई भूभाग तक 20 हाथियों ने एवं यहाँ से पहाड़ी क्षेत्र तक जाजरकोट के जनताओं ने अपनी पीठ में उठाकर लाया।
कोइलावास से जाजरकोट सामग्री को पहुँचाने में करीब 2 महीने का समय लगा था। पुल की सामग्री को यहाँ तक पहुँचाने में जाजरकोट के जनताओं ने खाने का खर्च के सिवाए मजदूरी नहीं ली पूरा श्रमदान किया। यह पुल बनाने में कितना खर्च लगा इसकी कोई जानकारी नहीं है। पुल निर्माण के बाद जाजरकोट के जनताओं ने ख़ुशी से राणा प्रधानमंत्री की जय जयकार के नारे लगाये ।
यह पुल पर्यटन स्थल के रूप में क्यों ?
इस पुल से प्रतिदिन सैकड़ों लोग जाजरकोट, रुकुम, डोल्पा, रुकुम के लोग नेपालगंज, सुर्खेत और काठमांडू इत्यादि जगहों पर जाते हैं। देश का सबसे पुराना उच्च गुणवत्ता वाले इस पुल को पुरातत्व विभाग में Register करना चाहिए तथा इसकी एतिहासिक महत्व की रक्षा करनी चाहिए।
इतिहास और विकास का बेहतरीन उदाहरण दर्शाने वाला मटेला का पुल पर्यटन के दृष्टिकोण से भी अति महत्वपूर्ण हैं। इसके नीचे कल-कल बहती भेरी नदी, नदी घाटियों का सुन्दर दृश्य, चारों ओर पहाड़ के सुन्दर नज़ारे इन्हीं सब के बीच बैठकर भेरी नदी की तजा मछलियों का स्वाद लेते हुए एतिहासिक मटेला पुल का अवलोकन कर सकते हैं।
यहाँ कैसे पहुंचें?
भारत से मटेला घुमने वाले पर्यटकों के लिए उत्तरप्रदेश के रुपैडिहा आकर वहां से नेपालगंज या कोहलपुर आना होगा। उसके बाद यहाँ से जाजरकोट के लिए गाड़ियाँ जाती रहती हैं उन्हीं में बैठकर आप मटेला उतर सकते हैं। काठमांडू से आने वाले पर्यटकों के लिए गोंगाबू नया बस पार्क से शाम के 6 बजे बसें जाजरकोट केलिए चलती हैं। उन्ही में बैठकर आप मटेला उतर सकते हैं।
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खर्चा कितना लगेगा?
रुपैडिहा से कोहलपुर आने में नेपाली 70 रुपये कोहलपुर से मटेला तक नेपाली 700 रुपये जाजरकोट में खाना सस्ता है सदा खाना 150 और चिकन मटन खाना 180 यह खर्चा एक तरफ का एक व्यक्ति का है इसी तरह आप कितने दिन रुकेंगें हिसाब कीजियेगा। काठमांडू से आने वाले यात्रियों के लिए एक तरफ का बस किराया नेपाली 2200 रुपये हैं।
कहाँ ठहरें?
मटेला में सुविधायुक अनेक होटल एवं लॉज हैं। आप अपनी पसंद के अनुसार कही भी रुक सकते हैं। जाजरकोट आकर रुकना चाहते हैं तो भी आपकी इच्छा यहाँ से मात्र 6 किलोमीटर दूर है। इसके आलावा आप रुकुम के चौरजाहरी जा सकते हैं यह स्थान पास में ही है। यहाँ होटल महंगे नहीं हैं 500 से 1000 नेपाली रुपये मात्र। कोई -कोई होटल में आप सिर्फ खाना खाए और रुकने का फ्री है।
मटेला घूमने कब जाएँ?
वैसे तो बर्षा के समय को छोड़कर आप किसी भी मौसम में जा सकते हैं। विशेषकर मार्च – अप्रैल में जाएँ।
FAQ
Q. कोहलपुर से जाजरकोट कितना किलोमीटर है?
Ans – 180 किलोमीटर
Q. मटेला के आसपास घूमने के लिए अन्य पर्यटन स्थल कौन-कौन से हैं?
Ans- जगतिपुर वायु घट्ट, शिव मंदिर कालेगांव, जाजरकोट दरबार
Q. जाजरकोट से रुकुम कितना दूर है?
Ans- जाजरकोट और रुकुम जिले का विभाजन भेरी नदी के द्वारा हुआ है, इसलिए रुकुम पास में ही है
Q. जाजरकोट में कौनसा मेला लगता है?
Ans – रमाइली मेला
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