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गोरखा मनकामना: यहाँ पूरी होती है सबकी मनोकामना 

December 4, 2023 by Sagar Budha

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20 सितम्बर 2015 में नेपाल में संघियता लागू कर 7  राज्यों का गठन किया गया । तब गोरखा जिला नेपाल के  गण्डकी प्रदेश में आ गया। इससे पहले यह जिला गण्डकी अंचल में पड़ता था। गोरखा जिले का जिला मुख्यालय पोखरिथोक बाजार से 12 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण पूर्व में स्थित यह मंदिर इस जिले के सहीद लखन गाँवपालिका में पड़ता है। 

मनकामना मंदिर गोरखा
मनकामना मंदिर गोरखा

मनकामना देवी का  मंदिर एक महत्वपूर्ण शक्तिपीठ है। समुन्द्रतल से 1303 मीटर की ऊंचाई में अवस्थित इस मंदिर परिसर से दक्षिण में शिवालिक पहाड़ियां और छिम्केश्वरी पहाड़ की छोटी तथा उत्तर की ओर अन्नपूर्णा और मनास्लु हिमालय की मनमोहक चोटियाँ का दृश्यावलोकन किया जा सकता है। सूर्योदय और सूर्यास्त का खुबसूरत नजारा इस मंदिर के प्रांगन से देखा जा सकता है। 

गोरखा की मनकामना देवी के मंदिर में बहुत से लोग स्वदेश तथा विश्व के विभिन्न जगहों से घूमने के लिए आते हैं। प्रत्येक वर्ष 10 से 12 लाख मनकामना देवी के भक्त एवं श्रद्धालु दर्शन करने यहाँ आते हैं।

Table of Contents

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  • मनकामना देवी की उत्पत्ति एवं मंदिर का का निर्माण 
  • मनकामना देवी का इतिहास और पौराणिक कथाएँ
  • मनकामना देवी के मंदिर में पुजारी कौन हैं?
  • मनकामना देवी का मंदिर खुलने तथा पूजा का समय
  • सिद्ध लखन थापा कौन थे ?
  • गोरखा की मनकामना देवी के मंदिर का धार्मिक महत्व
  • मनकामना देवी के मंदिर में कैसे पहुंचें
    • सड़क मार्ग
    • रेल मार्ग 
    • हवाई मार्ग
    • मनकामना मंदिर में केबलकार द्वारा यात्रा  
        • केबलकार के टिकट का नियम एवं शर्ते इस प्रकार हैं –
  • मंदिर में चढाने के लिए फूल प्रसाद कहां से ले जांए?
  • ठहरने की व्यवस्था
  • FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
    • Q. काठमांडू से मनोकामना मंदिर की दूरी कितनी है?
    • Q.मनोकामना से पोखरा की दूरी कितनी है?
    • Q. मनकामना किस लिए प्रसिद्ध है?
    • Q.मनकामना मंदिर में पुजारी कौन सी जाति का है?

मनकामना देवी की उत्पत्ति एवं मंदिर का का निर्माण 

मनकामना देवी के उत्पत्ति के सम्बन्ध में कोई भी लिखित ठोस प्रमाण किसी के पास भी नहीं हैं। विद्वानों द्वारा लिखी गई पुस्तक और सिद्ध लखन थापा के वंशजों के द्वारा कही गई कहानियों के अनुसार मनकामना देवी की उत्पत्ति हुए करीब 300 वर्ष हए हैं। पैगोडा शैली में बना मनकामना देवी के मंदिर का निर्माण सत्रहवीं शताब्दी में पृथ्वी नारायण शाह ने किया था।

इसे भी पढ़िए – पोखरा: नेपाल की प्राकृति आकर्षण का केंद्र

हाल ही में मनकामना जीर्णोद्वार समिति द्वारा इस मंदिर का पुनः निर्माण किया गया है। जीर्णोद्वार समिति के निगरानी में मंदिर के छत में तांबे के चादर पर सोने परत लगाईं गई है।अब मंदिर का कार्य समाप्त होकर मंदिर पूर्ण रूप से बनकर तैयार हो गया है। इस मंदिर का स्वरूप पुराने मंदिर का ही दिया गया है। मंदिर के सबसे उपर का हिस्सा पृथ्वी नारायण शाह की रानी के गहनो से बनाया गया है।

मनकामना देवी का इतिहास और पौराणिक कथाएँ

गोरखा नरेश राम शाह की पत्नी लीलावती साक्षात् देवी थीं। यह बात राजा राम शाह को ज्ञात न थी। दरबार में यह बात सिर्फ बाबा गोरखनाथ और सिद्ध लखन थापा को मात्र पता थी। राजा राम शाह अपने राज्य को भली भांति चला रहे थे बाबा गोरखनाथ और सिद्ध लखन थापा उनकी सेवा में दरबार में ही थे। प्रत्येक दिन रात्रि में रानी लीलावती दरबार से गाएब हो जाती थी एक दिन राजा को यह बात पता चल गई।

राजा को जिज्ञासा हुई की मेरी रानी रात्रिकाल में कहाँ जाती है और क्या करती है। एक दिन राजा इस बात का पता लगाने के लिए चुपचाप निगरानी कर रहे थे। उस रात्रि राजा ने देखा कि गोरखा दरबार के प्रांगन में विभिन्न देवी देवताओं के साथ उनकी रानी दुर्गा के रूप में है, साथ में बाबा गोरखनाथ और सिद्ध लखन थापा भी है। 

उसके बाद वे सब कहाँ जा रहे हैं इसका पता लगाने के लिए उनके पीछे-पीछे छुपकर चले गए। गोरखा दरबार से ऊपर एक पहाड़ी है जिसका नाम उपल्लो कोट है, उस ओर वे सभी जा रहे हैं और राजा भी उनके पीछे जा रहे हैं।

उपल्लो कोट पहुंचे पर दुर्गा स्वरूपा रानी लीलावती के शक्ति एक आकर्षक सभागृह दिखाई दिया। रानी लीलावती  देवी रूप में सिंह में सवार होकर, गोरखनाथ बाबा, सिद्ध लखन थापा सहित अन्य सिद्ध पुरुष तथा सभी देवी देवता सभागृह में प्रवेश कर गए। सभागृह के प्रवेश द्वार पर सिंह पहरा दे रहे थे।

उसके बाद राजा राम शाह को अपनी रानी लीलावती साक्षात् देवी होने का पता चला और अन्दर नहीं गए, अपने दरबार में वापिस आ गए। उसके अगले दिन प्रातः अपनी रानी से कहा कि उन्होंने ने एक स्वप्न देखा और सारी बात कह सुनाई। तब रानी ने कहा आप भी अन्दर आते तो कितना अच्छा होता यह बात यही पर समाप्त हो गई। अब राजा अपना राज्य चला रहे थे। 

एक एक दिन कर समय गुजर रहा था। मृत्यु लोक में जन्म लेने वाला सबकी मृत्यु होती है। राजा का भी अपनी आयु पूरा हो गया और मृत्यु को प्राप्त हो गए। पुराने ज़माने में सती प्रथा हुआ करती थी, जिसमे अपने पति की मृत्यु के पश्चात उनकी पत्नी भी पति के शव के साथ जिन्दा चीते में जल जाती थी।

मरस्यांगदी नदी और दरौदी नदी के संगम स्थल खैरेनी ( रामशाह घाट) में राजा राम शाह के शव को दाह संस्कार करने के लिए लाया गया। जब रानी लीलावती सती जाने के लिए चिता में बैठी तब सिद्ध लखन थापा ने राजा तथा रानी इस दुनियां में नहीं रहे तो मैं जी कर क्या करूँगा कृपया अपने साथ ले जाएँ।

एसा निवेदन करने पर रानी ने समझाया, लखन थापा हम तुम्हें अपने साथ नहीं ले जा सकते तुम इसकी चिंता न करो फिर से तुमको तथा तुम्हारी सभी संतानों को मैं शिला के रूप में उत्पन्न होकर अपनी सेवा का असवर प्रदान करुँगी तथा अपने  भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करुँगी।

जहाँ आज मनकामना देवी का मंदिर है, उस स्थान पर पहले खेती योग्य जमीन था। एक दिन एक स्थानीय किसान धनध्वज गुरुंग बैलों के साथ हल चला रहा था। उस समय उसका हल एक शिला से जाकर टकराया और रुक गया।

उसको तो खेत फिर से जोतना था ये हल क्यों रुका किस चीज में अटका यह जानने के लिए उसने  मिटटी हटाकर देखा, तो उसका हल के आगे का नुकीला भाग एक शिला में धंसा हुआ है और उस शिला से अत्यधिक मात्र में दूध और खून बह रहा है।

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हल चलाने वाला किसान अचंभित हुआ आनन् फानन में उसने सब को आवाज लगाकर बुलाया। सब गाँव वाले आये उनके साथ में सिद्ध लखन थापा भी आये। सती जाते हुए रानी ने जो भी कहा था वह सब  इस घटना के साथ मेल खा रहा था। दिव्यदृष्टि प्राप्त सिद्ध लखन थाप ने उसी समय तांत्रिक विधि द्वारा पूजा पाठ किया तब दूध और खून बहना रुक गया। 

इस घटना के बाद तत्कालीन गोरखा के राजा ने मनकामना देवी की पूजा अर्चना के लिए सिद्ध लखन थापा और उनकी संतानों को नियुक्त किया और लाल मोहर लगाकर एक डॉक्यूमेंट भी दिया साथ ही मंदिर के लिए जमीन भी दान में दिया। तब उस स्थान पर मंदिर का निर्माण किया गाया। उसी समय से मनकामना देवी कहकर पूजा अर्चना करते आ रहे हैं।

मनकामना देवी के मंदिर में पुजारी कौन हैं?

जब से मनकामना देवी की उत्पत्ति हुई तब से सिद्ध लखन थापा की संतान ही यहाँ के मुख्य पुजारी हैं। मनकामना देवी के मंदिर का मुख्य पुजारी होने का अधिकार पिता के मृत्यु के पश्चात पुजारी का बड़ा बेटा को है। 

पिता अपनी मृत्यु से पहले अपने बड़े बेटे को मंदिर के सभी पूजा विधि तथा कार्यों को सिखा देता है। यदि पुजारी का बेटा न हो तो पुजारी का भाई मंदिर का मुख्य पुजारी बन सकता है।मनकामना देवी के मंदिर में हाल के पुजारी श्री इन्सान थापा मगर है। ये सिद्ध लखन थापा की अठारहवीं पीढ़ी की संतान है।

मनकामना देवी का मंदिर खुलने तथा पूजा का समय

मंदिर प्रत्येक दिन खुलता है। मंदिर के पुजारी प्रत्येक दिन प्रातः 5 बजे मंदिर में आते हैं। प्रातः सबसे पहले खली पूजा और दर्शन मात्र किया जाता है। मंदिर में  7:30 से 8 बजे तक नित्य पूजा होती है। इस दौरान पुजारी मंदिर में भीतरी पूजा समाप्त कर मंदिर की परिक्रमा करते हैं तब माता के भक्तों के लिए पूजा और बलि देना शुरू होता है। उसके बाद शाम के 6 बजे जब तक सभी भक्तजनों की पूजा अर्चना समाप्त नही हो जाती मंदिर के पुजारी मंदिर में ही होते हैं।

 फिर संध्या आरती होती है। संध्या आरती में पुराना नगाड़ा(नेपाली वाध्य यंत्र) को बजाया जाता है। के पश्चात शंख ध्वनि होती है। शंख ध्वनि पूजा विसर्जन करने के लिए किया जाता है। इसमें मंदिर के पुजारी अपनी विधि विधान के अनुसार शंख और घंटी बजाते हैं।  फिर प्रातः मंदिर में चढ़ाया हुआ महाप्रसाद बांटते हैं। पूजा समाप्त होकर मंदिर बंद हो जाता है।

किंवदंती के अनुसार इस महाप्रसाद को विशेषतः अमुक बच्चों को खिलाकर नजदीक में स्थित बक्केश्वर महादेव के मंदिर का दर्शन कराने से उनकी वाणी आती है।

सिद्ध लखन थापा कौन थे ?

गोरखा दरबार में रानी की सेवा के लिए एक व्यक्ति की आवश्यकता पड़ी तब गोरखनाथ बाबा एक सेवक की तलाश में निकल पड़े। उस समय सिद्ध लखन थापा आज जहाँ बक्केश्वर महादेव का मंदिर है उस ओर के जंगल में पशुओं के लिए चारा पत्ती लेने गए हुए थे। गोरखनाथ बाबा और सिद्ध लखन थापा का मुलाकात यहीं पर हुआ। सिद्ध लखन थापा  पेड़ में चढकर पत्ती काट रहे थे।

गोरखनाथ बाबा ने उन्हें देखा और पेड़ से निचे उतरने के लिए कहा। सिद्ध लखन थापा निचे उतरे तब गोरखनाथ बाबा ने उनसे पूछा कि तुम्हें इस समय कुछ खाने का मन कर रहा है? तब लखन थापा ने कहा मुझे भूख लग रही है खीर खाने का दिल कर रहा है। बाबा गोरखनाथ योगी थे यह बात लखन थापा को मालूम नहीं थी। 

गोरखनाथ बाबा ने अपनी शक्ति से एक मेढक की रचना कर उसका दूध दुहकर खीर बनाके लखन थापा को खाने के लिए दिया और लखन थाप ने खीर खा लिया। तब बाबा गोरखनाथ ने अपना प्रत्यक्ष रूप का दर्शन दिया। फिर लखन थापा को लेकर वे एक गुफा में गए। 

उस गुफा में गोरखनाथ बाबा ने अपनी सारी विद्या उन्हें सिखाई तब लखन थापा सिद्ध हुए उसके बाद उन्हें दरबार में ले गए। राजा के देहांत के पश्चात सिद्ध लखन थापा अपने गाँव वापिस चले गए। मनकामना देवी की उत्पत्ति के पश्चात  मनकामना देवी का पूजा अर्चना करने लगे। 

बहुत समय पश्चात वृद्ध अवस्था में  सिद्ध लखन थापा ने तीर्थ यात्रा का मन बना लिया देवी की पूजा अर्चना करने का कार्यभार अपने भाइयों को सौंपकर वे तीर्थ यात्रा के लिए चल दिए। काफी समय तक तीर्थ यात्रा से न लौटने के कारण उनके भाइयों ने निर्णय लिया कि हमारा भाई बहुत वृद्ध हो गया था अब तक नहीं लौटा सायद मृत्यु को प्राप्त हो गए।

इसलिए उन्होंने तेरहवीं संस्कार आरम्भ कर दिया तेरहवीं संस्कार के अंतिम दिन में बेटियां तथा कन्यायें भी आती हैं। तेरहवीं संस्कार समाप्त कर बेटियां जब वापिस अपने घर लौट रही थी तब तिउरे भंज्यांग के पास में सिद्ध लखन थापा वृद्ध अवस्था में लाठी टेक कर उधर से आ रहे हैं और वेटियाँ इस ओर से जा रही है मुलाकात हो गया। उन बेटियों में से एक ने उन्हें पहचान लिया और कह दिया आपका तो तेरहवीं संस्कार हो गया है आज अंतिम दिन था मैं वहीँ से आ रही हूँ।

उसके बाद उन्होंने श्राप दिया “हमारी संतान चारों ओर फैले भूखे प्यासे न रहे और इनका भंडार भी न भरे” फिर वहीँ से वापिस चले गए। बेटी ने वापिस आकर सबको बताया कि सिद्ध लखन थापा वापिस आ गए हैं। उसके सब सब उनको ढूढने गए। सिद्ध लखन थापा की लाठी के जमीन पर लगे निसान का पीछा करते हुए ढूढ़ते लगे। ढूढ़ते हुए सब उसी स्थान के नीचे एक गुफा में पहुंचें जहाँ लखन थापा को गोरखनाथ बाबा ने उन्हें सिद्ध किया था। उस गुफा के आगे उनकी लाठी जमीन पर गाड़े हुए अवस्था में मिला।

चारों ओर ढूंढने पर वे नहीं मिले तब सिद्ध लखन थापा के भाइयों ने कहा कि वे यहीं पर शून्य में विलीन हो गए है। 

उसी वर्ष से उन्हें कुल देवता मानकर सिद्ध लखन थापा की संताने वर्ष में एक बार पूर्णिमा के दिन पूजा अर्चना करते आ रहे हैं। इससे पहले कुल देवता कहाँ और कैसे पूजा करते थे कोई जानकारी नहीं है। सिद्ध लखन थापा द्वारा गाड़ी गई लाठी आज भी यहां पर मौजूद है। 

गोरखा की मनकामना देवी के मंदिर का धार्मिक महत्व

इस मंदिर में विशेष रूप से नागपंचमी,  गुठी पंचमी (नवम्बर के महीने में पड़ने वाली पंचमी), बैसाख पंचमी और दशहरा के दिन पूजा अर्चना करने वाले श्रद्धालु एवं भक्तों की बड़ी भीड़ लगती है। यहाँ प्रत्येक अष्टमी के दिन बकरे की बलि चढाई जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार मनकामना देवी के मंदिर में आकर दर्शन एवं पूजा अर्चना करने से व्यक्ति की मन की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। 

इसलिए गोरखा की मनकामना देवी का मंदिर नेपाल का एक महत्वपूर्ण धार्मिक पर्यटन स्थल है। शाह वंश के राजा और नेपाली जनता की राष्ट्रिय इष्ट देवी होने के कारण मनकामना देवी विशिष्ट भगवती के रूप में पूजी जाती हैं।

मनकामना देवी के मंदिर में कैसे पहुंचें

सड़क मार्ग

सोनौली – भारत से आने वाले यात्रीगण जो सोनौली बॉर्डर से आना चाहते हैं। सबसे पहले गोरखपुर आकर वहां से सोनौली बॉर्डर क्रोस करें। नेपाल के बेल्हिया बस पार्क में आकर वहां से कुरिनटार के लिए गाड़ी में बैठें। बेल्हिया से गाडी न मिलने पर यहाँ से 25 किलोमीटर दूर बुटवल आयें। यहाँ से काठमांडू जाने वाली बहुत सी गाड़ियाँ मिल जाती हैं।

 इन गाड़ियों में से किसी एक में बैठकर कुरिनटार में पहुंचें। इसकी पूरी जानकारी के लिए यह आर्टिकल पढ़िए – गोरखपुर से काठमांडू कैसे जाएँ? सोनौली से कुरिनटार  159 किलोमीटर है। गाडी में आप आराम से 5 से 6 घंटे में यहाँ पहुँच जायेंगें। 

कुरिनटार के नजदीक ही चेरेस नामक स्थान से मनकामना देवी के मंदिर में जाने वाली रोप वे (केबलकार) चलती हैं। चेरेस से मनकामना देवी के मंदिर तक केबल कार की तार की लम्बाई 2.7 किलोमीटर है। 10 से 12 मिनट केबलकार में यात्रा करने के पश्चात आप मनकामना देवी के मंदिर परिसर में पहुँच जायेंगें। 

बनबसा (गड्डा चौकी)- बनबसा से आने वाले यात्री गण बनबसा बस अड्डे में उतरकर तांगे या रिक्शा से महाकाली नदी का पुल क्रोस कर गड्डा चौकी आयें। Immigration office से थोड़ी दुरी पर महेन्द्रनगर जाने वाली माइक्रो बस चलती रहती है। 

यहाँ से महेन्द्रनगर बस पार्क तक आयें फिर काठमांडू जाने वाली रात्रि बस में कुरिनटार के लिए टिकट लें। पूर्व पश्चिम राजमार्ग से 605 किलोमीटर यात्रा 14 घंटे में पूरी हो जाएगी। यहाँ से चलने वाली रात्रि बसें प्रातःकाल में कुरिनटार पहुँचती हैं। बस के यात्री चाय नाश्ता कुरिनटार में ही करते हैं। 

रुपैडीहा- उत्तरप्रदेश राज्य के बहराइच जिले में रूपैडिया पड़ता है। रुपैडिहा नेपाल भारत सीमा पर है। यहाँ से यात्रा करने वाले यात्री गण पहले रुपैडिहा बस पार्क में आयें। यहाँ से रिक्शा, तांगा या पैदल चलकर नेपाल भारत बार्डर क्रोस करें। 

नेपाल के प्रवेश गेट से 50 मीटर की दूरी पर कोहलपुर तथा नेपालगंज के लिए माइक्रोबस चलती रहती है उनमे बैठकर या तो आप नेपालगंज जाएँ या कोहलपुर जाएँ। जहाँ भी जाएँ वहां से रात्रि में काठमांडू जाने वाली बसें चलती हैं। यहाँ से चलने वाली बस अंतिम 7 बजे शाम तक मिलती है। इन बस में आप कुरिनटार के लिए अपना टिकट बनवाएं। 

यहाँ से चलने वाली बस रात्रि के 11 बजे दांग जिले के लमही बाजार में खाना खाने के लिए रूकती हैं। पूर्व पश्चिम राजमार्ग से 423 किलोमीटर यात्रा 11 घंटे में पूरी हो जाती है। लेकिन नेपाल में बस तीब्र गति से दौड़ते हैं इसलिए  प्रातः 7 या 8 बजे आप कुरिनटार पहुँच जायेंगें।

अँवुवा से – तनहूँ जिले के आँवुखैरेनी से होते हुए म्याग्दी नदी के पुल को क्रोस करने पर गोरखा जिले का अँवुवा नामक स्थान पड़ता है। यहाँ से सीधे मनकामना देवी के मंदिर तक वाहनों से जाया जा सकता है। अगर आप Bike Ride हैं तो आपके लिए यह बहुत बढ़िया विकल्प रहेगा,सीधे बाइक से आप मनकामना देवी के मंदिर तक पहुँच जायेंगे। वाहन से जाने वाले यात्रियों से लिए अंवुवा से मनकामना देवी का मंदिर नजदीक पड़ता है। 

इसके आलावा गोरखा जिले के जिला मुख्यालय गोरखा बाजार के पास पोखरिथोक बाजार से बुंगकोट, घैरुंग मार्ग से होते हुए आप मनकामना देवी के मंदिर में पहुँच सकते हैं। यहाँ से मनकामना देवी का मंदिर केवल 12 किलोमीटर दूर है।

इसके आलावा नेपाल के विभिन्न शहरों से गाड़ी गोरखा जिले के जिला मुख्यालय में चलती रहती है।आप नेपाल देश के किसी भी कोने से मनकामना देवी के दर्शन के लिए आसानी से पहुँच सकते हैं।

इसे भी पढ़िए – नेपाल कैसे जाएं ? सुगम और सरल रास्तों की जानकारी।

रेल मार्ग 

नेपाल में रेलवे केवल बिहार राज्य के जयनगर से जनकपुरधाम तक ही जाती है। इसके आलावा नेपाल के किसी भी स्थान पर रेलवे नहीं है। धीरे-धीरे नेपाल के तराई भूभाग में  रेलवे पटरी पटरी बिछाई जा रही है अब नेपाल पश्चिम महेन्द्रनगर से जनकपुर तक रेलवे पटरी बिछाने की तयारी कर रहा है। इसलिए भारतीय यात्री महानुभाव रेल सेवा का लाभ जिस किसी भी बार्डर से नेपाल आ रहे हैं, उस बार्डर के निकटवर्ती भारतीय रेलवे स्टेशन पर ही ले सकते हैं।    

हवाई मार्ग

भारत या अन्य जिस किसी भी देश से नेपाल यात्रा पर आने वाले पर्यटक देश का पहला त्रिभुवन अंतराष्ट्रीय विमानस्थल में आकर नेपाल का भ्रमण कर सकते हैं। दिल्ली से सीधे काठमांडू के लिए फ्लाइट बुक कीजिये। काठमांडू पहुंचकर यहाँ से सीधे मनकामना देवी के मंदिर में जा सकते हैं। यहाँ से दो विकल्प है पहला विकल्प यह है किआप सीधे मनकामना देवी के मंदिर तक गाडी में जा सकते है। 

दूसरा विकल्प कुरिनटार पहुंचकर वहां से केबलकार में सीधे मनकामना देवी के मंदिर तक जा सकते हैं। मैं आपको दूसरा विकल्प की सल्लाह देता हूँ इसमें आपकी यात्रा सरल और सहज होगी। काठमांडू से दैनिक मनकामना दर्शन के लिए गाड़ियाँ चलती रहती हैं। सार्वजानिक यातायात की तुलना में जीप और माइक्रो बस में किराया ज्यादा होता है।  

पद यात्रा (ट्रेकिंग) – ट्रेकिंग करने के शौक़ीन लोग मुग्लिन आकर तनहू जिले के आंबुखैरेनी पहुंचकर यहाँ से 3 से 4 घंटा चढ़ाई चढ़ने के बाद मनकामना देवी के मंदिर में पहुंचा जा सकता है। 

मनकामना मंदिर में केबलकार द्वारा यात्रा  

पृथ्वी राजमार्ग में  चितवन जिले का इच्छाकामना गॉंवपालिका में पड़ने वाला कुरिनटार के समीप चेरेस नामक स्थान से सीधे मनकामना देवी के मंदिर तक रोप-वे (केबलकार) संचालित है। यहाँ से मनकामना देवी का मंदिर 2.7 किलोमिटर दूर है। केबलकार मे 10 से 12 मिनट मे मन्दिर के समीप पहुंचा ज सक्ता है। फिर यहाँ से 2 से 3 मिनट की पैदल यात्रा के पश्चात मनकामना देवी के मन्दिर मे पहुंचा जा सकता है।

मनकामना देवी के मंदिर में केबलकार से जाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति के टिकट का मूल्य नेपाली रूपए में  है।

One Way Ticket 

Nepalese Ticket Price Indian Ticket Price 
Normal410Normal520
Child 3-4 years to above 245Child 3-4 years to above 336
Student(ID card Compulsory)305
Senior citizens ( 60 Years and Above)285
Differently Abled205

Two Way ticket 

Nepalese Ticket Price Indian Ticket Price 
Normal700 Normal880
Child 3-4 years to above 420Child 3-4 years to above 576
Student(ID card Compulsory)525
Senior citizens ( 60 Years and Above)490
Differently Abled350
केबलकार के टिकट का नियम एवं शर्ते इस प्रकार हैं –
  • टिकट खरीदने की तारीख से केवल तिन दिन तक मानी होगा 
  • तीन साल से कम उम्र के बच्चो का टिकट नहीं लगेगा 
  • विद्यार्थी हैं तो बोर्डिंग पास से पहले वैध स्टूडेंट कार्ड दिखाना होगा।
  • सीनियर सिटिजन हैं तो बोर्डिंग पास से पहले उम्र प्रमाणित होने वाला कोई भी एक डॉक्यूमेंट दिखाना होगा।
  • एक बार ख़रीदा गया टिकट वापिस नहीं होगा।

इसे भी पढ़िए – गोरखपुर से काठमांडू कैसे जाए?

मंदिर में चढाने के लिए फूल प्रसाद कहां से ले जांए?

जैसे ही केबल कार से उतरकर गोरखा मनकामना देवी के मंदिर के और बढ़ेंगे इस रास्ते पर अनेकों फूल और प्रसाद की दुकानें हैं अपनी इच्छा अनुसार 100 150 या इससे अधिक रुपए का फुल प्रसाद लेकर मनकामना देवी के मंदिर में चढ़ाया जा सकता है। रास्ते के दोनों और फूल प्रसाद की दुकान वाले मनकामना देवी को क्या-क्या चढ़ाया जाता है वह सब सेट बनाकर के टोकरी में दे देते हैं।

ठहरने की व्यवस्था

हमारे सामने देवी के दर्शन को आने वाले अनेकों श्रद्धालु भक्तगण कुरिनटार में यह मनोकामना देवी के मंदिर के चारों और अनेकों होटल एवं लॉज है। इनमें आप अपनी इच्छा अनुसार रात्रि में विश्राम कर सकते हैं यहां के होटलों में कमरा किराया एक रात का 12 सौ से 2000 तक में मिल जाते हैं और  180 से लेकर 250 तक नेपाली रुपए में स्वादिष्ट नेपाली खाना मिल जाएगा।

FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

Q. काठमांडू से मनोकामना मंदिर की दूरी कितनी है?

Ans – मनकामना तक सीधे सड़क मार्ग से 141 किलोमीटर और कुरिनटार तक 105 किलोमीटर है।

Q.मनोकामना से पोखरा की दूरी कितनी है?

Ans – 105 किलोमीटर

Q. मनकामना किस लिए प्रसिद्ध है?

Ans – यहां मन की हर इच्छा पूरी होती है तथा नेपाल की राष्ट्रीय देवी है।

Q.मनकामना मंदिर में पुजारी कौन सी जाति का है?

Ans – थापा मगर जाति के पुजारी यहां पूजा करते हैं।

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सागर बुढ़ा
सागर बुढ़ा

मेरा नाम सागर है। मैं नेपाल कर्णाली प्रदेश के जाजरकोट जिला का रहने वाला हूँ। मैं एक मध्यम वर्गीय किसान का बेटा होने के कारण मैंने भी अपने पिता की तरह कृषि कार्य को चुना।

यह मेरी डायरी है इसमें मैं नेपाल यात्रा से सम्बंधित सभी जानकारियाँ शेयर करता हूँ

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