खप्तड राष्ट्रीय निकुञ्ज कैसे जाएं? रहना, खाना, मौसम, कहां से जाएं? कितना खर्च लगेगा? क्या क्या देखने को मिलेगा?
प्राकृतिक सौंदर्य का धनी देश नेपाल पर्यटकों के लिए विश्व में एक अद्वितीय और रमणीय स्थल है। नेपाल की संस्कृति, ऐतिहासिक स्थल , धार्मिक स्थल , भौगोलिक स्थिति तथा लोगों का सदव्यवहार के कारण नेपाल विश्व प्रसिद्ध है।
विश्व की 10 सबसे ऊँची पर्वत श्रेणियों में से 8 नेपाल में ही पड़ते हैं जिनमे सागरमाथा अर्थात माउंट एवरेस्ट 8848 मीटर नेपाल के सोलुखुंबू जिले में पड़ता है। इसके आलावा यहाँ कई धार्मिक स्थल जैसे पशुपतिनाथ , मुक्तिनाथ ,भगवान बुद्ध की जन्म भूमि लुम्बिनी , रामायण की पात्र माता सीता का जन्म स्थान जनकपुर धाम और हनुमान ढोका इत्यादि।
विभिन्न पर्यटकीय स्थल पोखरा, काठमांडू, नामचेबाजार इत्यादि तथा अनेक राष्ट्रीय निकुंज नेपाल की शोभा बढ़ाते हैं। नेपाल में प्रतिवर्ष 8 लाख से भी अधिक पर्यटक विश्व के भिन्न भिन्न स्थानों से भ्रमण करने के लिए आते हैं। पूरे विश्व से आने वाले सभी पर्यटकों को नेपाल की संस्कृति, त्यौहार, पर्व, यहाँ की प्रकृति, वेशभूषा और नेपाल के विभिन्न स्वादिष्ट पकवान अपनी ओर खींचते हैं।.
नेपाल के लोग अपने यहाँ आने वाले हर पर्यटकों को बड़ी जोर के साथ स्वागत सत्कार करते हैं. नेपाली बहुत ही सहयोगी, सद्भाव , वाले होते हैं क्योकि इनका मानना है की अतिथि देवो भव ! अपने यहाँ आने वाले हर मेहमान देवता के समान है इसी कारण से नेपाल में भारत से ही नहीं बल्कि दुनियां के अनेक जगहों से लोग यहाँ आते है।
खप्तड राष्ट्रीय निकुञ्ज का संक्षिप्त परिचय ( About Khaptad National park)
अब हम पर्यटकों के लिए नया गंतव्य तथा धरती का स्वर्ग कहलाने वाला नेपाल के सुदूर पश्चिम का Khaptad क्षेत्र का वर्णन करते हैं खप्तड क्षेत्र खप्तड राष्ट्रीय निकुंज (Khaptad national park) में पड़ने वाले इस क्षेत्र के पूर्व में अछाम तथा बाजुरा, पश्चिम में बझाङ्ग तथा डोटी चार जिलों के संगम में पड़ता है।
समुद्र ताल से 3200-3500 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। बझांग, बाजुरा डोटी अछाम के 21 ग्राम विकास समिति एवं 95 वार्ड खप्तड नेशनल पार्क के क्षेत्र मे समाये हुए हैं।
खप्तड नेशनल पार्क की स्थापना सन 1984 में किया गया था। khaptad national park का कुल क्षेत्रफल 225 वर्ग किलोमीटर तथा मध्यवर्ती क्षेत्र का कुल क्षेत्रफल 216 वर्गकिलोमीटर है। प्राचीन काल में आर्य लोग खप्तड क्षेत्र को केचरादरी कहते थे।
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Doti Nepal 22 वां 24 वां राज्यकाल में एक शक्तिशाली राज्य था। यहाँ के राजा राईका महाराज थे। । सुदूर पश्चिमाञ्चल विकास क्षेत्र में मध्य पहाड़ी भाग में स्थित Khaptad क्षेत्र अब प्रदेश नंबर 7 सुदूर पश्चिम प्रदेश में पड़ता है।
Khaptad national park को नेपाली सेना आवश्यक विकास एवं संरक्षण करती है। नेपाली सेनाओं द्वारा संरक्षित होने के कारण यहाँ की वनस्पति, जड़ी-बूटी काटने तथा शिकार करने के लिए प्रतिबंधित है।।
खप्तड क्षेत्र में आनेवाले हर पर्यटक सीजन के अनुसार विभिन्न जंगली फलों के स्वाद ले सकते हैं जिनमे काफल, हिसालु, किल्मोड़ा, आड़ू तथा पुलम इत्यादि हैं।
खप्तड नेशनल पार्क में 22 घास के हरे भरे बुग्याल है इन घास के मैदानों में प्राकृतिक रूप से विभिन्न फूल आकर्षक रूप से खिले हुए होते हैं।
नेपाल में मिलने वाली 850 पक्षी प्रजातियों में से 260 प्रकार की पक्षियां यहाँ पाई जाती हैं।
नेपाल में मिलने वाली वनस्पतियों में से 567 प्रकार की जड़ी बूटी तथा वनस्पति Khaptad national park में पाई जाती है। जिनमे सबसे अधिक बुरांश(rhododendron arboreum), धतूरा(Jimsonweed) , हेमलाक और रिंगाल आदि हैं।
इस क्षेत्र में जंगली जानवर भी निवास करते हैं हिरण, लंगूर, घोरल, चिता ,लोमड़ी, भालू , जंगली कुत्ता और पांडा आदि प्रमुख जानवर हैं।
खप्तड नेशनल पार्क के बुग्याल घोड़े, खच्चर, गाय, भैंस, भेड़ तथा बकरियों के लिए उपर्युक्त चरागाह क्षेत्र हैं।
खप्तड के प्रमुख धार्मिक एवं पर्यटन स्थल मेले पर्व तथा लोक संस्कृति
खप्तड क्षेत्र में प्रत्येक वर्ष गंगा दशहरा के दिन मेला लगता है। इस मेले में चारों जिलों से हजारों की संख्या में महिलाएं-पुरुष, युवा-युवतियां बाल-बालिकाए आते हैं। इस मेले के अवलोकन के लिए देश के विभिन्न क्षेत्रों तथा विदेश से भी अनेक पर्यटक आते हैं विशेषकर भारत से।
खप्तड क्षेत्र में भगवान शिव का निवास स्थान है इस क्षेत्र में त्रिवेणी है। खप्तड क्षेत्र में अनेक धार्मिक स्थल हैं। यह खप्तड भूमि खप्तड बाबा का तपोभूमि है यह क्षेत्र भगवान शिव की तपोभूमि भी है किवदंतियों के अनुसार खपरमांडो से खप्तड हुआ। खप्तड क्षेत्र से उत्तर के हिमालय तथा दक्षिण के तराई भू भाग दृष्टिगोचर होती है
शूरमादेवी भगवती के आंगन में , शैलेश्वरी माता के शिर, वरदादेवी के छाती में तथा बड़ी मलिका देवी के मंदिर को स्पर्श करता है खप्तड नेशनल पार्क।
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यहाँ आने वाले हर पर्यटकों को अपने रात्रि विश्राम के लिए टैंट, तिरपाल स्वयं लेकर जाना पड़ता है। खाने के लिए समस्या नहीं है, स्थानीय विभिन्न व्यंजन मेले में स्थाई होटलों में भरपूर मात्रा में मिल जाएगी।
भक्तजन इस मेले में विशेषकर त्रिवेणी मंदिर का दर्शन, गंगा स्नान सहस्त्रलिङ्ग का पूजन कर अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए वरदान मांगते हैं।
मेले के अवसर पर इस त्रिवेणी मंदिर में व्रतबन्ध, सत्यनारायण का पूजा इत्यादि धार्मिक अनुष्ठान किये जाते हैं। गंगा दशहरे के अवसर पर गंगा स्नान तथा इस मंदिर में पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है ऐसा जनविश्वास है।
देउडा नृत्य
यह मेला दो दिन तक लगता है इस मेले की दूसरी सबसे आकर्षक यहाँ की संस्कृति मूलक देउडा नृत्य है
सुदूर पश्चिम की मौलिक संस्कृति में आधारित अपनी परम्परागत पोशाक में युवा युवतियां तथा महिलाएं दिनभर तथा रातभर देउडा खेलते हैं।
स्थानीय भाषा में प्रश्न तथा उत्तर को एक गीत के रूप में गाकर सैकड़ो युवा युवती एक आकर्षक गोल घेरे में अपनी एड़ियों को मिलाकर नृत्य करते हुए घूमते है। सुदूर पश्चिम की धड़कन देउडा नृत्य बड़े उत्साह के साथ इस मेले में प्रस्तुत किया जाता है अगर आप भी देउडा नृत्य का मजा लेना चाहे तो आइए खप्तड नेशनल पार्क गंगा दशहरे में।
सुदूर पश्चिम के अन्य लोक संस्कृति मूलक नृत्य हुड्क्यौली, पुतला, भुवा नृत्य और न्यौली इत्यादि हैं।
खप्तड राष्ट्रीय निकुञ्ज कैसे जाए?
भारत से खप्तड – भारत से आनेवाले पर्यटकों के लिए पश्चिम Banbasa indo-nepal border पार कर महेन्द्रनगर धनगढ़ी आना पड़ता है फिर यहाँ से अतरिया कैलाली आप चाहे तो सीधे दिल्ली से बस में महेन्द्रनगर धनगढ़ी या फिर बनबसा आ सकते हैं.
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नेपाल के विभिन्न क्षेत्रों से खप्तड नेशनल पार्क – काठमांडू से धनगढ़ी तक सड़क तथा हवाई मार्ग से पहुंचा जा सकता है फिर उसके बाद कैलाली जिले के अतरिया बस द्वारा पहुंचा जा सकता है। यहाँ आने के लिए महेन्द्रनगर धनगढ़ी से बसें टैक्सियां, माइक्रो जाती रहती हैं।
कैलाली अतरिया से बसें टैक्सियां, माइक्रो डडेलधुरा के लिए चलती रहती हैं। फिर यहाँ से गोदावरी। खान डाडा और भासु के चट्टान होते हुए करीबन 9 घंटे यात्रा के पश्चात डडेलधुरा जिले के स्याउली पहुंचा जा सकता है।
मनोरम पहाड़ी जिला डडेलधुरा के विभिन्न खूबसूरत नजारों का अवलोकन करते हुए सेती नदी के किनारे किनारे धार्मिक स्थान सालमुनि दाहिने और वागेस्वर बाएं पार करते हुए डोटी के दीपायल बाजार पहुंचा जा सकता है।
खप्तड पहुँचने के लिए डोटी के सिलगढ़ी से कच्ची मार्ग से सफर करना पड़ता है। करीबन 1 घंटा वाहन से कच्ची मार्ग में यात्रा करने के पश्चात बगलेख पहुँचते हैं। यहाँ से सड़क यात्रा समाप्त होकर पैदल यात्रा आरम्भ होती है। वागलेख से पैदल 1 घंटा यात्रा करने के पश्चात झिंगरना पहुंचा जा सकता है, यहाँ पर्यटकों के लिए सामान्य खाना एवं ढहरने की व्यवस्था है।
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झिगरना से ही खप्तड नेशनल पार्क की सीमाएं आरम्भ होती है, झिगरना से लगभग 3 घंटा पैदल जंगल के रास्ते चढ़ाई चढ़ने के पश्चात बीचपानी पहुंचा जा सकता है। इस स्थान पर पर्यटकों के लिए आवश्यक आश्रम पेयजल एवं शौचालय की उचित व्यवस्था है।
बीचपानी से थोड़ा ढलान (उतराई ) की और निचे उतरकर फिर थोड़ा चढ़ाई चढ़ते समय आप घना जंगल जंगल के रास्ते रिंगाल, चट्टान, अनेक प्राकृतिक झरने, अनेक प्राकृतिक जड़ी बूटी , फल फूल तथा विभिन्न प्रकार की पशु पंछियों की आवाज,
अनेक फूलों जंगली वनस्पतियों को निहारते हुए आपको पैदल 3 घंटे की यात्रा का थकान का महसूस नहीं होगा। हुए 3 घंटे पैदल यात्रा करने के पश्चात आपको खप्तड के खूबसूरत घास के मैदान (बुग्याल) दिखाई देंगे
डोटी अछाम बझांग तथा बाजुरा के चारों जिलों से खप्तड नेशनल पार्क में पहुंचना सुगम है। बाह्य पर्यटकों के लिए विशेषकर डोटी का सिलगढ़ी तथा अछाम का साफे बगर मार्ग उपर्युक्त हैं।
खप्तड नेशनल पार्क में घूमने का सही समय
खप्तड क्षेत्र का तापमान गर्मी में 0-18 डिग्री तथा सर्दियों में -18 डिग्री से भी नीचे गिरता है।
खप्तड के बुग्याल दिसंबर से मार्च तक 1 मीटर बर्फ से ढके हुए होते हैं। यहाँ घूमने के लिए मई, अगस्त और ऑक्टूबर उपर्युक्त समय है।
इस क्षेत्र में माटेश्वरी मंदिर, खापड़ महादेव, नागढुंगा, खप्तड बाबा का आश्रम, खप्तड ताल और गणेश मंदिर आदि धार्मिक एवं पवित्र स्थल हैं। इस कारण से सुदूर पश्चिम का खप्तड राष्ट्रिय निकुन्ज एक पवित्र धार्मिक एवं पर्यटन स्थल है
Q – खप्तड राष्ट्रीय निकुञ्ज कहां स्थित है?
Ans – बझांग, बाजुरा, डोटी और अछाम ज़िले के संगम स्थल के मध्य स्थित है।
Conclusion
मैं आशा करता हूँ की आपको यह जानकारी अच्छी लगी होगी। अपने दोस्तों के बीच सोशल मीडिया पर अधिक से अधिक शेयर कीजिये उनको भी खप्तड राष्ट्रिय निकुन्ज घुमाइए धन्नेवाद !
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