उत्तर में कुशे बुग्याल, दक्षिण में कल-कल बहती भेरी नदी का सुन्दर दृश्य, पूर्व में मुस्कुराता सिस्ने हिमालय, नीचे होलू जिउला घाटी, आस पास हरे- भरे सुन्दर वन और चारों तरफ सुन्दर पहाड़ियों के मध्य खलंगा की पहाड़ी पर बसा है,जाजरकोट दरबार। खलंगा की पहाड़ी से, पडोसी जिले रुकुम व् सल्यान के कुछ भाग यहाँ से दिखाई देते हैं। रुकुम जिले का चौरजहारी घाटी का मनोरम दृश्य का लुफ्त उठाने के लिए यह स्थान उपयुक्त है।
नेपाल के इतिहास में क्या है? बाइसे – चौबिसे राज्यकाल
इतिहास के अनुसार, पृथ्वी नारायण शाह द्वारा नेपाल के एकीकरण से पूर्व नेपाल में विभिन्न राजा और राज्य थे। पश्चिम नेपाल का खस साम्राज्य ईसा की चौदहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में विघटित हो गया था। इसके बाद जगह-जगह सामंत स्वतंत्र होने लगे। इस तरह नेपाल के गण्डकी क्षेत्र में 24 और कर्णाली क्षेत्र में 22 राज्यों का निर्माण हुआ। इसी को नेपाल के इतिहास में बाईसे – चौबिसे राज्यकाल कहते हैं।
जाजरकोट राज्य का संक्षिप्त परिचय
नेपाल मे बाइसवें – चौबीसवें राज्यकाल के समय जाजरकोट बाइसवें राज्य का अति शक्तिशाली राज्य था। जाजरकोट राज्य के संस्थापक राजा जगती सिहं मेदिनी वर्मा थे। इन्होने सन 1399 में जाजरकोट राज्य की स्थापन किया।
जाजरकोट राज्य की राजधानी सर्वप्रथम जगतिपुर नामक स्थान में था। राजा जगती सिंह के बाद, राजा विजय सिंह का घोडा हमेशा खलंगा के पीपलडांडा पहाड़ी पर चरने के लिए जाया करता था।
घोड़े का उस स्थान को पसंद करना और उस समय के छोटे राज्य एक दुसरे पर आक्रमण करते थे। इसलिए सुरक्षा के दृष्टीकोण से भी अति उत्तम इस क्षेत्र में विजय सिंह के पोते ने जाजरकोट दरबार का निर्माण किया था। सोलहवीं शताब्दी में जगतिपुर से खलंगा राजधानी स्थानान्तरण किया गया।
जाजरकोट दरबार का इतिहास
255 वर्ष पुराना लाल दरबार का निर्माण हरि शाह एवं 228 वर्ष पुराना सफ़ेद दरबार का निर्माण राजा इंद्र नारायण शाह ने किया था।इन्द्र नारायण से पूर्व के राजा हरि शाह से लेकर गजेन्द्र नारायण शाह तक के राजाओं ने लाल दरबार से शासन किया। उसके बाद के राजा इंद्र नारायण और अन्य सात राजाओं ने सफ़ेद दरबार से राज किया। इस दरबार से राज्य चलाने वाले अंतिम राजा प्रकाश विक्रम शाह हैं।
नेपाल सरकार ने सन 1961 में नेपाल से छोटे राज्य एवं राजाओं को समाप्त कर दिया तब से राजा ने इस महल में रहना छोड़ दिया। उसके बाद जाजरकोट के अंतिम राजा प्रकाश विक्रम शाह ने उस दरबार को तब के जिला पंचायत को नेपाली 60 हजार रूपए में बेच दिया। तब से यह महल नेपाल सरकार की संपत्ति का हिस्सा बन गया।
नेपाल में राजाओं की समाप्ति और जाजरकोट दरबार की बिक्री के कुछ सालों बाद भी जब तक नेपाल में गणतंत्र लागु नहीं हुआ, तब तक जाजरकोट की जनता इन्हें राजा मानती रही।
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पूर्व में जहाँ से जाजरकोट राज्य सञ्चालन होता था उस लाल दरबार एवं सफ़ेद दरबार से सन 1961 से ही सरकारी कार्य होता आया है। यह दरबार अभी जिला प्रशासन कार्यालय का सरकारी कार्यालय है। इससे पूर्व यहाँ जिला विकास समिति और कृषि विकास बैंक का कार्यालय था। सफ़ेद दरबार को नेपाल सरकार ने एतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व के आधार पर नेपाल के 100 पर्यटन स्थलों की सूचि में रखा है।
जाजरकोट दरबार का निर्माण कब हुआ था ?
1- लाल दरबार
जाजरकोट में लाल दरबार का निर्माण राजा पृथ्वी नारायण शाह के परम मित्र एवं जाजरकोट के छठवें राजा हरि शाह ने सन 1769 किया था। उस समय यह दरबार सात मंजिलों में निर्माण किया गया था।
2 – सफ़ेद दरबार
लाल दरबार निर्माण के 27 वर्षों बाद राजा इंद्र नारायण शाह ने राज्य सञ्चालन के लिए एक अन्य दरबार की आवश्यकता ठानी। फिर एक और दरबार निर्माण करने का निश्चय किया। खलंगा पहाड़ी की सबसे ऊँचे स्थान का चयन कर लाल दरबार के समीप सन 1796 एक और सफ़ेद दरबार का निर्माण किया।
जाजरकोट दरबार निर्माण की प्रक्रिया क्या थी?
जाजरकोट दरबार निर्माण के लिए जाजरकोट, रुकुम और सल्यान जिले के लोगों बुलाकर इन लोगों द्वारा रुकुम जिले के चौरजहारी से अपनी पीठ में ईंट ढोकर लाने को कहा। फिर इन लोगों ने चौरजहारी से इटें यहाँ लाये। इस दरबार के निर्माण के लिए भक्तपुर से कारीगर लाया गया था। भक्तपुर के प्रसिद्ध कारीगर नाक्चे ने अपनी कला और डिजाईन के अनुसार इस दरबार का निर्माण किया।
जाजरकोट दरबार की पौराणिक वस्तुएँ कहाँ हैं?
पृथ्वी नारायण शाह द्वारा नेपाल के एकीकरण के समय में जाजरकोट राज्य ने बहुत बड़ा योगदान किया था। इस योगदान के ईनाम में जाजरकोट राज्य को बहुत सारे एतिहासिक वस्तुए प्राप्त हुईं थीं। राज्य द्वारा किये गए योगदान की स्मृति को ताजा करने वाली अनेकों एतिहासिक वस्तुएं राजा के भाई तथा सगे सम्बन्धियों ने गायब कर दिया है।
जाजरकोट दरबार के सातवें मंजिल में नारायण थान का मंदिर था। इस मंदिर में अति प्राचीन तीन मूर्तियों थीं । उनमे से एक हनुमान जी की मूर्ति माओवादी द्वन्द के समय में गुम हो गई थी। अन्य दो मूर्तियों में से एक पीपलडाँडा के गणेश मन्दिरमा में तथा दूसरी मूर्ति रानागाउँ के कालिका मन्दिरमा में स्थापित किया गया है।
जाजरकोट के सेनाओं ने हुम्ला जिला और चीन के बीच में स्थित ताक्लाकोट में आक्रमण कर विजय प्राप्त किया था। इस युद्ध में उहोंने चमड़े का तोप और कुछ अन्य हथियार भी जीते थे। इन सब को राष्ट्रिय संग्रहालय छाउनी काठमांडू में रखा गया है। पृथ्वी नारायण शाह के शक्ति का प्रतीक स्वरुप प्राप्त तलवार अभी जगतिपुर के एक मंदिर में खर्के देवता के रूप में पूजा जाता है।
लाल दरबार से किये गए महत्वपूर्ण एतिहासिक कार्य
- जगतिपुर से खलंगा राजधानी स्थानांतरण के पश्चात लाल दरबार से सामान्य राज काज के कार्य किया जाता था।
- जाजरकोट के राजा हरि शाह, उनके बेटे गजेन्द्र शाह और गोरखा के राजा पृथ्वी नारायण शाह के बीच सन 1769 में संधि हुआ था। इस संधि तथा अन्य जितने भी संधि किये गए उनका सञ्चालन इसी लाल दरबार से किया गया था।
सफ़ेद दरबार से किये गए महत्वपूर्ण एतिहासिक कार्य
- प्रथम विश्व युद्ध में 150 जाजरकोट की सेना ने भाग लिया।
- नया नेपाल निर्माण के समय बाँके, बर्दिया, कैलाली और कन्ञ्चनपुर को नया नेपाल में मिलाने के कार्य में जाजरकोट की 800 सेनाओं ने योगदान किया था।
- पृथ्वी नारायण शाह द्वारा नेपाल के एकीकरण के समय जाजरकोट की सेनाओं का महत्वपूर्ण योगदान।
- जब बहादुर शाह तिब्बत में बंधक हुए थे उनके उद्वार के लिए जाजरकोट की सेनाओ का परिचालन।
- राणा प्रधानमंत्री जंग बहादुर राना की दो पुत्रियाँ जगत कुमारी और दीर्घ कुमारी का विवाह एक ही मंडप में जाजरकोट के राजा के साथ इस महल में हुआ था।
- तब के श्री 5 रण बहादुर शाह की पुत्री दुर्गा कुमारी के साथ जाजरकोट के राजा दीप नारायण शाह ने इसी दरबार में विवाह किया था।
विभिन्न समय में भूकंप द्वारा जाजरकोट दरबार को क्षति
1- सन 1934 का भूकंप
- आज से 90 बर्ष पहले सन 1934 में नेपाल और भारत को केंद्र बनाकर 8 रेक्टर स्केल का भूकंप आया था। इस विनाशकारी भूकंप के कारण जाजरकोट दरबार पूर्ण रूप से ढह गया था।
- 90 वर्ष पहले के उस भूकंप को जाजरकोट के लोग, दरबार को क्षति पहुँचाने वाले विपदा के रूप में लेते हैं।
- सात मंजिले दरबार को 4 मंजिलों में पुनः निर्माण किया गया।
- इस दरबार के पुनः निर्माण के लिए भक्तपुर से नेवार जाति के इंजिनियर को बुलाया गया था।
2- सन 1989 का भूकंप
- आज से 35 वर्ष पहले नेपाल के उदयपुर को केंद्र बनाकर 6.6 रेक्टर स्केल का भूकंप आया था। उस भूकंप ने 40 सेकेण्ड में ही पुरे नेपाल को हिला दिया था।
- इस भूकंप से जाजरकोट दरबार के पश्चिमी हिस्से पर भारी क्षति पहुंची थी।
- फिर इस दरबार का पुनः निर्माण 1995 में किया गया।
3 – सन 2015 का भूकंप
- अप्रैल 2015 में दिन के 11 बजकर 56 मिनट में गोरखा जिले के बारपाक आस पास के क्षेत्र को केंद्र बनाकर 7.6 रेक्टर स्केल का भूकंप आया था।
- उस भूकंप ने गोरखा, सिन्धुपाल्चोक, काठमांडू, काभ्रे, दोलखा, धादिंग , मकवानपुर सहित नेपाल के 14 जिलों में भारी जनधन की हानि किया ।
- 2015 के इस भूकंप से जाजरकोट दरबार को कोई भी क्षति नहीं पहुंची।
4 – सन 2023 का भूकंप
- 3 नवम्बर 2023 में रात के 11 बजकर 47 मिनट में जाजरकोट जिले के रामीडांडा को केंद्र बनाकर 6.4 रेक्टर स्केल का भूकंप आया।
- इस भूकंप से विशेषतः जाजरकोट, रुकुम और सल्यान जिलों सहित कर्णाली प्रदेश के अधिकांश जिलों में भारी जन धन की क्षति हुई।
- इस भूकंप के कारण जाजरकोट दरबार को काफी बड़ा नुक्सान हुआ है।
- इस बार के भूकंप के चलते जाजरकोट दरबार के आस पास बने पौराणिक भवन भी ढह गए हैं।
जाजरकोट दरबार अभी किस स्थिति में हैं?
- जाजरकोट दरबार के प्रवेश द्वार में दो सिंह आगे के पैर उठाकर आक्रोश मुद्रा में खड़े कलाकृति वाला गेट 1979 में ढह गया था।
- जाजरकोट दरबार में प्रयोग हुई खिडकियों की कलाकृति और स्वरुप देखने पर शुरू के जैसे ही लगते हैं, लेकिन नेपाल सरकार द्वारा उनकी उचित प्रकार से देखभाल न होने के कारण, ज्यादातर पौराणिक कलाकृतियों का अस्तित्व अब समाप्त हो गया है।
- यह दरबार इस समय जीर्ण अवस्था में है। दरबार के पुनः निर्माण के लिए जाजरकोट जिला द्वारा अर्थमंत्रालय को बार बार पत्र भेजा गया। इसके बावजूद इस महल के पुनः निर्माण के लिए बजट नहीं दिया जा रहा है। इस दरबार के पुनः निर्माण के लिए अनुमानित नेपाली 13 करोड़ रूपए की आवश्यकता है।
- महलों के बीच में रानियों के स्नान के लिए स्विमिंग पुल बने थे जिनका अभी कोई भी नामोनिशान नहीं हैं।
- यह दरबार पुरातत्व विभाग में रजिस्टर है, इसके बाबजूद भी इसकी देखभाल और संरक्षण में किसी की भी रूचि नहीं है।
जाजरकोट दरबार का संरक्षण कैसे करना चाहिए?
- जाजरकोट दरबार की मौलिकता और पुरातात्विक महत्व, एवं इतिहास के संरक्षण के लिए इसके पुराने ही स्वरुप में भूकंप प्रतिरोधी पुनः निर्माण करना चाहिए।
- दरबार की मौलिकता और पौराणिकता की संरक्षण कर कर्णाली प्रदेश का मुख्य पर्यटन स्थल बनाना चाहिए।
- इस दरबार में नेपाल सरकार का जिला प्रशासन कार्यालय है। इसे नया भवन बनाकर यहाँ से हटाना चाहिए क्योंकि यहाँ सरकारी कार्यालय होने के कारण इसके इतिहास और महत्व पर असर पड़ा है।
- इसका उचित प्रचार-प्रसार होना चाहिए जिससे देश के ही नहीं बल्कि विदेश के पर्यटक भी यहाँ घूमें और जाजरकोट के स्थानियों को रोजगार प्राप्त हो।
जाजरकोट दरबार कैसे पहुंचें ?
जाजरकोट दरबार पहुंचें के लिए एकदम आसान है। काठमांडू से रोज शामको 6 बजे जाजरकोट के लिए रात्रि बस चलती हैं। उन्हीं में बैठकर आप जाजरकोट पहुँच सकते हैं। नेपालगंज और कोहलपुर से जाजरकोट के लिए प्रातः गाड़ियाँ चलती हैं उन्हीं में बैठकर आप जाजरकोट पहुँच सकते हैं।
भारत से आने वाले पर्यटक के लिए सबसे पहले नेपाल कैसे आयें यह आर्टिकल यहाँ क्लीक करके पढ़ लीजिये। फिर काठमांडू पहुँचने वाले पर्यटक नया बस पार्क शामको 6 बजे गाड़ी में बैठे।
रुपैडिहा से आने वाले पर्यटक साथी या नेपाल के बॉर्डर से नेपाल प्रवेश करने वाले पर्यटक साथी सबसे पहले कोहलपुर या नेपालगंज पहुंचें नेपाल के विभिन्न शहरों से कोहलपुर नेपालगंज के लिए गाड़ियाँ चलती रहती हैं। फिर यहाँ से आप जाजरकोट की गाड़ी में बैठकर आयें।
जाजरकोट में रहने खाने की व्यवस्था?
जाजरकोट में अनेक होटल एवं लॉज हैं। यहाँ आप उचित पैसे में रात्रि विश्राम कर सकते हैं। यहाँ कहाँ भी सस्ता मिलता है। खाने में भेरी नदी एवं छेडागाड नदी की मछलियाँ, पानी की चक्की में पिसा मंडुवा, तथा मक्की की रोटी, घी, लेगडा, बिछुवा की सब्जी, सेल रोटी, फ़िनी रोटी, दुनट आदि नेपाली स्वादिष्ट खाना मिलेगा साथ में फ्री वाई फाई के और हिमालय का दृश्य।
जाजरकोट घुमने कब जाएँ ?
आप सालभर कभी भी जाजरकोट घुमने जा सकते हैं। नेपाल घुमने का सबसे अच्छा मौसम फरवरी, मार्च, अप्रैल तथा सितम्बर अक्टूबर और नवम्बर है।
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निष्कर्षण
जाजरकोट दरबार एक एतिहासिक, पुरातात्विक और सांस्कृतिक रूप से अति महत्वपूर्ण सम्पदा है। जाजरकोट जिले की 255 और 228 वर्ष पुराना इतिहास के संरक्षण के लिए जाजरकोट दरबार को बचाए रखना अनिवार्य है। ये दरबार जाजरकोट का ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण कर्णाली प्रदेश का मुख्य पर्यटन स्थल है इसलिए इनकी उचित देखभाल और संरक्षण से स्थानीय जनताओ को रोजगार मिलेगा।
FAQ
Q. जाजरकोट दरबार की कौन सी प्रथा हट चुकी है?
Ans – पृथ्वी नारायण शाह ने जाजरकोट राज्य को शक्ति का प्रतीक मानकर एक तलवार दिया था। इस तलवार की पूजा के लिए नौ भैसें और नों बकरों की बलि दी जाती थी। अब यह प्रथा समाप्त हो चुकी है।
Q. दरबार के संरक्षण में किसकी रूचि नहीं है?
Ans – स्थानीय हितकारक एवं नेपाल सरकार
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