चांगुनारायण मंदिर,इतिहास, निर्माण, जीर्णोद्वार, मंदिर की शिल्पकला,यहाँ की मूर्तियाँ, पूजा, कैसे जाएँ?, कहाँ ठहरें?
समुन्द्र तल से 1,372 से 2,191 मीटर की ऊंचाई में स्थित चांगुनारायण मंदिर नेपाल के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है। प्राचीन पुरातात्विक शिला स्तम्भ के रूप में रहा यह मंदिर भक्तपुर जिले के चांगुनारायण नगरपालिका में स्थित है। चांगुनारायण मंदिर का निर्माण 323 ईसा पूर्व लिच्छवीकाल के राजा श्री हरिदत्त वर्मा ने किया था।
यह मंदिर केवल एतिहासिक,कलात्मक और धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं बल्कि नेपाल का प्रमुख पर्यटन स्थल भी है। काठमांडू घाटी में स्थित सात विश्व धरोहरों में से चांगुनारायण मंदिर भी एक है। काठमांडू घाटी में स्थित अन्य मंदिरों में से सबसे प्राचीन इस मंदिर को सन 1969 में यूनेस्को विश्व सम्पदा की सूचि में रखा गया है। पूरे काठमांडू घाटीअवलोकन करने के लिए भी प्रसिद्ध है।
चांगुनारायण मंदिर का इतिहास
चांगुनारायण मंदिर को चंगुनारायण, चम्पक नारायण तथा गरुड़ नारायण आदि नाम से भी जाना जाता है। प्रागैतिहासिक काल में इस मंदिर का क्या नाम था इसके बारे में कोई नहीं जानता है। नेपाल के इतिहास में 300 ई.सा. पूर्व से लिच्छवी राजाओं ने नेपाल पर 800 वर्षों तक शासन किया था। इस समय को नेपाल के इतिहास में लिच्छवी काल कहते हैं। लिच्छवी काल में इस मंदिर का नाम डोला शिखर स्वामी था।
इसके पीछे एक कारण यह था, चांगुनारायण मंदिर जिस पहाड़ी पर स्थित है. उस पहाड़ी को डोलागिरीर और`इस मंदिर के देवता को यहाँ के लोग पहाड़ी का स्वामी मानते थे। इसलिए इस मंदिर को डोला शिखर कहते थे।
नेपाल के मध्यकाल में नेपाल पर मल्ल राजा शासन करते थे। इनका शासनकाल 13 वीं शताब्दी से 17 वीं शताब्दी तक रहा। इस समय को नेपाल के इतिहास में मल्ल काल कहते हैं। मल्ल काल में चांगुनारायण मंदिर का नाम नेपाली भाषा में कथिन था।
नेपाली भाषा में ‘चाँप’ (मजबूत लकड़ी वाली पेड़ वर्ग की एक वनस्पति है।) को “च” और वन को “गुँ” कहते हैं। बाद में चंगुनारायण शब्द का अपभ्रंश होकर चांगुनारायण शब्द की उत्पत्ति हुई। संस्कृत भाषा में इस मंदिर को चंपक नारायण कहते हैं।
मंदिर का निर्माण
चांगुनारायण मंदिर का निर्माण लिच्छवीकाल में राजा हरिदत्त वर्मा ने की थी लेकिन लिच्छवीकालीन दुसरे लिच्छवि राजा मानदेव ने बिक्रमी संवत 521( सन 464) में चांगुनारायण मंदिर में गरुड़ जी की मूर्ति स्थापना कर अभिलेख रखा था। उसी समय लिच्छवी राजा मानदेव ने मंदिर के लिए भूमि दान किया था। इस बात का उल्लेख उनके द्वारा चांगुनारायण मंदिर में रखा गया अभिलेख में है।
राजा मानदेव ने चांगुनारायण के मंदिर में स्वयं की एवं उनकी पत्नी की मूर्ति भी लगवाई थी। मंदिर निर्माण की सामग्री में धातु का कम तथा लकड़ी पत्थर और ईटों का अधिक प्रयोग किया गया है। धातु का प्रयोग केवल मुख्य द्वार लड़ियों और मंदिर के शीर्ष भाग पर नुकीला शिरा पर ही किया गया है।
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चांगुनारायण मंदिर का जीर्णोद्वार
समय-समय पर इस मंदिर का जीर्णोद्वार होता चला आ रहा है। मध्यकाल में राजा शिव सिंह की रानी गंगारानी और 18वीं शताब्दी की शुरुवात में कांतिपुर नगर के शासक भास्कर मल्ल के शासनकाल में चांगुनारायण मंदिर का जीर्णोद्वार हुआ था। 2015 के विनाशकारी भूकंप के कारण मन्दिर का उपरी छत क्षतिग्रस्त हो गया था। तत्पश्चात इस मंदिर का जीर्णोद्वार 2017 में संपन्न किया गया।
मंदिर में रंगरोगन
विक्रमी संवत 2018 (सन 1961) में तत्कालीन नेपाल के राजा श्री 5 महेंद्र वीर विक्रम शाह देव ने चांगुनारायण मंदिर में रंग रोगन किया था। उस समय लगाया गया रंग अभी तक है, लेकिन 25 April 2015 के विनाशकारी भूकंप के कारण तथा बार – बार मंदिर का जीर्णोद्वार करने के कारण मंदिर का रंग उखड गया था। 62 वर्ष पश्चात अब 2023 में इसका फिर से रंग रोगन किया गया है।
चांगुनारायण मंदिर की शिल्पकला
चांगुनारायण मंदिर पैगोडा शैली में बना है। नेपाल में मंदिर निर्माण की मौलिक शैली पैगोडा शैली है। यह मंदिर लिच्छवीकालिन वास्तुकला का नमूना भी है। चांगुनारायण का मंदिर चतुष्कोण आकार का है। यह मंदिर दोमंजिला है। इस मंदिर की निचले मंजिल की छत टायलों से बनी है तथा उपले मंजिल की छत पीतल से बनी चादरों से निर्माण किया गया है।
दोनों मंजिलों में मझले आकार की खिड़कियाँ हैं। दोनों मंजिलो में 40 चौकोर आकृति बने हुए हैं प्रत्येक आकृति में तीन तरह की मूर्तियाँ खुदी हुई हैं। जिसमे सबसे ऊपर पेड़ और लताएँ, मध्य भाग में मुख्य देवता (भगवान् विष्णु और भगवान् शिव की अनेक रूप) तथा सबसे नीचे मनुष्य, पशु और पक्षियों की मूर्तियाँ बनाई गई हैं। पहले मंजिल में भगवान श्री विष्णु जी का वाहन गरुड़जी की पत्थर की मूर्ति है।
इस मंजिल में चारों दिशाओं में चार मुख्य द्वार हैं। प्रत्येक मुख्य द्वार के दायें और बांये एक एक दरवाजे हैं जो नहीं खोले जाते हैं। पश्चिम का मुख्य द्वार प्रायः खुला रखा जाता है। समय-समय पर अन्य मुख्य द्वारों को भी खोला जाता है। मुख्य द्वार के दायें और बाएं गंगाजी, यमुनाजी तथा अन्य देवी देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित की गई हैं। द्वार के ऊपर धातु से बनी लड़ियाँ सुसज्जित हैं। इन लड़ियों में विभिन्न कलाकृतियाँ बनाई गई हैं। मंदिर के चारों तरफ विभिन्न देवीदेवताओं की काष्ठ से बनी कलात्मक मूर्तियाँ हैं।
चांगुनारायण में स्थापित मूर्तियाँ कुछ इस प्रकार हैं
- वैष्णवी – दूसरी शताब्दी में स्थापित पाषाण से बनी यह मूर्ति चांगुनारायण मंदिर के पूर्व दक्षिण भाग में उत्तर की ओर मुड़ी हुई मूर्ति है।
- बैकुंठ विष्णु – चांगुनारायण मंदिर के पूर्व में स्थित पश्चिम की ओर मुख है। इस मूर्ति के पंचमुख हैं। विष्णु के दाये तथा बाएं बराह और नरसिंह के मुख हैं। शेष मुख शांत मुद्रा में दीखते हैं। विष्णु के दस हाथों में विभिन्न आयुध और गले में हार है।
- सूर्य – आठवीं शताब्दी में स्थापित सूर्य की मूर्ति चांगुनारायण मंदिर के भण्डार में स्थित है।
- बैकुंठ विष्णु – पाषाण से निर्मित उत्तर मध्यकालीन मूर्ति चांगुनारायण मंदिर के दक्षिण की ओर स्थापित है।
- जय – दशवीं शताब्दी में पाषाण से निर्मित जय की मूर्ति मंदिर की पूर्व की तरफ आँगन में स्थित है।
- विजय – पत्थर से निर्मित यह मूर्ति मंदिर के पूर्व दिशा में आँगन में स्थित है और पश्चिम की और मुड़ी हुई है।
- शिव – पत्थर से निर्मित आठवी शताब्दी में स्थापित शिव की मूर्ति मंदिर के भंडार में स्थित है।
- श्रीधर विष्णु – सातवीं शताब्दी में पत्थर से निर्मित यह मूर्ति मंदिर के पूर्व दिशा में है।
- गरुडासन विष्णु – पत्थर से निर्मित तेरहवीं शताब्दी में स्थापित यह मूर्ति मंदिर के पश्चिम में है।
- पद्यमपाणी लोकेश्वर – पत्थर से निर्मित यह मूर्ति मंदिर परिसर में स्थापित है। इस मूर्ति का निर्माण आठवीं शताब्दी में किया गया था।
- विष्णु विक्रांत – आठवीं शताब्दी में पत्थर से निर्मित यह मूर्ति दक्षिण पश्चिम कोने में स्थित है।
- गरुड़ – सातवीं शताब्दी में पत्थर से निर्मित यह मूर्ति मंदिर के पशिम में स्थित है।
- विश्वरूप – चांगुनारायण मंदिर के दक्षिण दिशा में स्थित पत्थर से निर्मित इस मूर्ति का निर्माण आठवीं शताब्दी में किया गया था।
- बुद्ध – आठवीं शताब्दी में पत्थर से बनी बुद्ध की मूर्ति मंदिर के पश्चिम में स्थित है।
- गरुड़ – मंदिर के पूर्व भाग में गरुड़जी की पत्थर से बनी मूर्ति है। इसकी स्थापना नवीं शताब्दी में किया गया था।
- सिंहिनी – दसवीं ग्यारहवीं शताब्दी में पत्थर से निर्मित यह मूर्ति ,मंदिर परिसर में स्थित है।
- शिव – पत्थर से निर्मित उत्तर मध्यकालीन शिव की मूर्ति मंदिर परिसर में स्थित है।
- कृष्ण – पत्थर से बनी कृष्ण की मूर्ति मंदिर परिसर में स्थित है।
- हनुमान – मध्यकालीन पत्थर से निर्मित हनुमान की मूर्ति मंदिर परिसर में स्थापित है।
- महाकाल – पत्थर से निर्मित महाकाल की मूर्ति मंदिर परिसर में स्थित है।
- कौमारी – चांगुनारायण मंदिर पूर्व दक्षिण भाग में उत्तर की ओर मुड़ी हुई मूर्ति पत्थर से बनी हुई है तथा इसकी स्थापना दूसरी शताब्दी में किया गया था।
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चांगुनारायण मंदिर के विशेष पर्व एवं मेले
चांगुनारायण मंदिर के मुख्य पुजारी चक्रधरानन्द राजोपाध्याय है। इस मंदिर में नाग पंचमी, कृष्ण जन्माष्टमी, हरिबोधिनी एकादशी, पूर्णिमा, तीज और नवमी आदि में विशेष रूप से पूजा अर्चन की जाती है।
नाग पंचमी
नाग पंचमी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। यह श्रवण मास के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन नाग देवता की पूजा की जाती है। इस दिन नेपाल में ब्राह्मण लोग हिन्दुओं के घर – घर जाकर अपने हाथ से तैयार नाग देवता की फोटो मुख्य द्वार के ऊपर लगाते हैं। नेपाल में इसके पीछे एक धार्मिक भावना जुडी हुई है। नाग की फोटो दरवाजे के ऊपर लगाने से नाग देवता प्रसन्न होते हैं इससे वर्षभर उस घर के किसी भी सदस्य को सर्पदंश का भय नहीं रहता है।
तीज (हरितालिका तीज)
नेपाल में हिन्दू नारियों द्वारा मनाया जाने वाला प्रमुख त्यौहार तीज है। इस दिन विवाहित महिला तथा अविवाहित युवतियां व्रत रखती हैं। विवाहित महिला अपने पति की लम्बी आयु के लिए तथा अविवाहित युवतियां अपने लिए सुयोग्य पति की कामना के लिए इस व्रत को रखती हैं। इस दिन हिन्दू नारियां भगवान शिव की आराधना करती हैं। यह पर्व भाद्र मास की शुक्ल द्वितीय से पंचमी तिथि तक 4 दिन बड़ी घूम धाम से मनाया जाता है।
इस दिन भगवान् शिव की आराधना के साथ – साथ पूरे नेपाल में शिव मंदिर के प्रांगन, स्कूल के प्रांगन, खेल के मैदान इत्यादि जगहों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजन किया जाता है, जिसमे महिलाएं नेपाली परंपरागत वाद्ययंत्र को बजाकर गीत गाकर नाचती हैं। नेपाली हिन्दू महिलाओं द्वरा आनदमय और स्वत्रन्त्र रूप से मनाये जाने वाले तीज में आजकल अन्य धर्म और जातियों की महिलाएं भी हर्षोल्लास के साथ इस पर्व को मनाती हैं।
कृष्ण जन्माष्टमी
भगवान श्री विष्णु के आठवें अवतार भगवान् श्री कृष्ण हैं। इनके जन्मदिन के रूप में श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाते हैं। यह हिन्दुओं का वार्षिक महापर्व है। इस दिन सारे संसार के हिन्दू लोग – श्रद्धा भक्ति के साथ भगवान श्री कृष्ण की पूजा आराधना कर इस पर्व को बड़ी धूमधाम के साथ मानते हैं।
चांगुनारायण मंदिर में होने वाली मुख्य जात्राएँ
इस मंदिर में विशेष महत्वपूर्ण मेले और जात्राएँ वार्षिक रूप से होती रहती हैं, जिनमे चांगुनारायण मंदिर में होने वाली मुख्य जात्राएँ कुछ इस प्रकार हैं – बैसाख कृष्ण पक्ष की अष्टमी, श्रावण शुक्ल द्वादसशी और पूर्णिमा के दिन तथा फाल्गुन पूर्णिमा के दिन विशेष जात्राएँ होती हैं।
बैसाख कृष्णपक्ष अष्टमी जात्रा
इस दिन चांगुनारायण, कीलेश्वर और छिन्नमस्ता देवी की तीन परिक्रमा की यात्रा होती है और उसके दूसरे दिन कृष्ण की छोटी जात्रा कर इस जात्रा को मनाते हैं।
श्रावण शुक्ल पूर्णिमा जात्रा
श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन कलश यात्रा की जाती है। इसके लिए चांगुनारायण मंदिर से भूखे पेट काठमांडू तक कलश लेकर पैदल यात्रा किया जाता है फिर हनुमानढोका मंदिर पहुंचकर स्वागत तथा पूजा कर उस कलश को अन्दर प्रवेश कराते हैं। यहाँ से प्रसाद लेकर चांगुनारायण मंदिर वापिस आते हैं। चांगुनारायण मंदिर पहुंचकर इस जात्रा को समापन करते हैं।
फाल्गुन पूर्णिमा जात्रा
फाल्गुन पूर्णिमा के दिन कृष्ण भगवान् की सबसे बड़ी जात्रा किया जाता है। इस दिन पूजा आराधना कर इस जात्रा को समापन किया जाता है।
चांगुनारायण मंदिर में कितने पर्यटक घूमने आते हैं?
चांगुनारायण मंदिर में वर्षभर बीस हजार से भी अधिक पर्यटक पूरी दुनिया से घूमने के लिए आते हैं। चांगुनारायण घूमने के लिए अधिकांश पर्यटक नेपाल के पडोसी देश भारत से आते हैं।
चांगुनारायण मंदिर कैसे जाएँ?
चांगुनारायण मंदिर काठमांडू से 20 किलोमीटर एवं भक्तपुर से 6 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। इस मंदिर में आप वाहन या ट्रेकिंग कर पहुँच सकते हैं।
ट्रेकिंग
तेलकोट पहाड़ी के मार्ग से आप सीधे चांगुनारायण मंदिर पहुँच सकते हैं। यह रूट काठमांडू घाटी का सबसे अच्छा रूट माना जाता है। चांगुनारायण जाने वाले इस रुट से सीधे आप नगरकोट पहुँच सकते हैं। सम्पूर्ण काठमांडू घाटी को निहारने के लिए यस क्षेत्र प्रसिद्ध है। काठमांडू से पैदल चलने पर आप 3 घंटा 32 मिनट में चांगुनारायण मंदिर पहुँच जायेंगें।
सार्वजनिक बस
काठमांडू के हर एक स्थान से भक्तपुर के लिए दैनिक सिटी बसें चलती रहती हैं। आप सीधे उनमे बैठकर भातपुर आयें फिर यहाँ से चांगुनारायण मंदिर के लिए बस में बैठे। काठमांडू से आप सीधे टैक्सी में चांगुनारायण मंदिर पहुँच सकते हैं। बस में आपको 60 रुपये तक किराया लग जाएगा जबकि टैक्सी में 1000 से 1500 तक का किराया लग जायेगा।
कहाँ ठहरें?
चांगुनारायण क्षेत्र में ठहरने के लिए एक दो होटल्स और होम स्टे हैं। लेकिन आप चाहे तो काठमांडू या भक्तपुर में किसी अच्छे होटल में ठहर सकते हैं नेपाल में सस्ते से सस्ता होटल का किराया एक रात का नेपाली 1000 -1200 रुपये है। खाने का खर्चा भी सादा खाना नेपाली 150 से 180 तथा मटन चिकन खाना 250 नेपाली रूपए में मिल जाता है।
चांगुनारायण क्षेत्र में बैंकिंग सुविधा
चांगुनारायण क्षेत्र में बैंकिंग सुविधा नहीं है। इसलिए जितने भी पर्यटक यहाँ घूमने जाते हैं। काठमांडू या भक्तपुर में स्थित ए टी एम से पैसे निकालकर अपने साथ कैश ले जाते हैं। मैं आपको भी यही सल्लाह दूंगा।
चांगुनारायण मंदिर में कब जाएँ?
नेपाल में मौसम के हिसाब से बात करूँ तो यहाँ घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से अप्रेल के मध्य है इस समय मौसम साफ रहता है। इसलिए चारों ओर खुबसूरत नज़ारे दिखाई देते हैं हिमालय सफ़ेद दिखाई देते हैं प्रकृति हरी भरी दिखती है।
यदि विशेष तिथियों की बात करूँ तो आप यहाँ बैसाख कृष्णपक्ष अष्टमी, श्रावण शुक्ल पूर्णिमा, फाल्गुन पूर्णिमा इस समय इस मंदिर में धार्मिक जात्राएँ होती हैं।
इसके आलावा इस मंदिर में पूजा के लिए आप नाग पंचमी, कृष्ण जन्माष्टमी, हरिबोधिनी एकादशी, पूर्णिमा, तीज और नवमी आदि विशेष तिथियों में जाकर भगवान् चांगुनारायण जी का पूजा अर्चना कर सकते हैं।
FAQ
Q. चंगू नारायण मंदिर किस लिए प्रसिद्ध है?
Ans- लिच्छवी राजा मानदेव ने इस मंदिर को लकड़ी, पत्थर, धातु एवं ईटों से निर्माण कराया था। नेपाल के इतिहास में विभिन्न काल खण्डों में निर्मित अनेक देवीदेवताओं की पौराणिक मूर्तियाँ एवं स्तंभ हैं। लिच्छविकालीन सुन्दर शिल्पकला एवं नेपाल का प्राचीन मंदिर होने के कारण चांगुनारायण मंदिर प्रसिद्ध है।
Q.चंगू नारायण मंदिर के पीछे क्या कथा है?
Ans- प्राचीन समय में चांप नामक पेड़ की ठूंठ से चांगुनारायण भगवान् की उत्पत्ति हुई। नेपाली भाषा में “चां” का अर्थ चांप की लकड़ी तथा “गुं|”का अर्थ होता है पहाड़ी। चांप की लकड़ी से पहाड़ी पर उत्पन्न होने के कारण इन्हें चांगुनारायण कहते हैं।
Q.चंगू नारायण मंदिर की स्थापना किसने की?
Ans – चांगुनारायण मंदिर की स्थापन लिच्छवी राजा हरिदत्त वर्मा ने की थी लेकिन बाद में इस मंदिर का निर्माण दुसरे लिच्छवी राजा मानदेव ने बिक्रमी संवत 521 में किया था।
Q. चंगू नारायण मंदिर किस शैली का है?
Ans – पैगोडा शैली
Q. चंगुनारायण मंदिर का पुनर्निर्माण कब हुआ था?
Ans – सन 1702 में
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