घोडे जात्रा नेपाल में मनाए जाने वाले विभिन्न त्योहार में से एक है। इसकी अपनी अलग ही महत्ता है। इस त्योहार की धार्मिक महत्व से भी कहीं अधिक सामाजिक महत्ता है।
घोडे जात्रा पर्व को जानने से पहले आईए जानते हैं नेपाल में घोडे का क्या महत्व है। घोड़े को प्राचीनकाल से ही फुर्तीला और बलवान जानवर के रूप में लिया जाता है।
मानव इसे अपने अनुकूल प्रशिक्षित कर अपना यातायात का साधन तथा मनोरंजन के लिए इसका उपयोग करते आ रहा हैं।
वैदिककाल की बात करें तो उस समय घोड़े की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उस समय के चक्रवर्ती सम्राट अपनी राज्य की सीमा की सुरक्षा, एवं दुसरे राज्यों से कर उठाने के लिए श्याम वर्ण का घोडा अश्वमेघ यज्ञ के लिए सजाकर छोड़ते थे। श्री राम, महाराजा सगर जी आदि का उल्लेख पुरानों में पाया जाता है।
घोड़े की सामाजिक प्रतिष्ठा और मान्यता नेपाल का प्रदेश नंबर 6 कर्णाली प्रदेश के मुगु जिले में आज भी देखने को मिलता है। यहाँ एक प्रथा है जिसे घोडा – भेडा प्रथा कहते हैं। इस प्रथा में यदि किसी का किसी के साथ झगडा हो जाता है, कोई केस पड़ जाता है, जमीन या सम्पति का बंटवारा हो इत्यादि में स्थानीय मध्यस्तकर्ता को बुलाते हैं।
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किसी भी विवाद का समाधान होने पर मध्यस्तकर्ता को भेड़ का मांस खिलाकर घर वापसी के समय उनको घोड़े में बैठाकर भेजा जाता है।
घोड़े के शक्ति के आधार पर अठारहवीं शताब्दी में अश्वशक्ति(हॉर्स पॉवर) शब्द का प्रयोग स्कॉटलैंड के इंजीनिर जेम्स वाट ने शक्ति को नापने वाले यंत्र में प्रयोग किया था।
नेपाल में घोड़े के सम्मन के लिए घोड़े जात्रा मनाया जाता है। घोड़े जात्रा, घोड़ों का रेस नहीं है अपितु नेपाल में एक धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यता के साथ इसका गहरा सम्बन्ध है। इसलिए घोडे जात्रा एक राष्ट्रीय पर्व है।
घोडे जात्रा कब मनाया जाता है?
पिशाच चतुर्दशी के दुसरे दिन अमावस्या को यह त्यौहार मनाया जाता है इसलिए इस त्यौहार को तांत्रिक मान्यताओं के साथ भी जोड़ा जाता है। नेपाल में मल्लकाल के समय घोड़े दौड़ाकर भुत – प्रेतों को भागने का कार्य किया जाता था इससे यह ज्ञात होता है कि मल्लकाल में तांत्रिक विद्या का अधिक प्रयोग किया जाता था।
नेपाल में विभिन्न प्रकार के पर्व एवं त्यौहार मनाये जाते हैं। सब नेपाली मिलकर प्रत्येक त्यौहार में सम्मिलित होते हैं। उन त्यौहारों में घोड़े जात्रा भी एक है। इस साल यह त्यौहार चैत्र 26 गते सोमवार अर्थात 8 अप्रैल 2024 को मनाया जायेगा। इसको पिशाच चतुर्दशी भी कहा जाता है।
वर्तमान में घोडे जात्रा कैसे मनाया जाता है?
इस दिन काठमांडू के टूडिखेल में घोड़े को दौड़ाया जाता है तथा विभिन्न देवी देवताओं की रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है। घोड़े जात्रा नेवार जाती का सबसे बड़ा त्यौहार है। इस दिन भगवान् शिव की पूजा बड़ी धूम-धाम के साथ किया जाता है।
इस दिन नेवार समुदाय के लोग अपनी परंपरागत वेशभूषा धारण करते हैं। परंपरागत नेवारी बाजे बजाते हैं और नाचगान करके बड़े धूम-धाम के साथ यह पर्व मनाते हैं। इस दिन काठमांडू घाटी का वातावरण बड़ा ही रमणीय होता है।
टूडीखेल के नजदीक लुकुवा महादेव का मंदिर है। इस मंदिर को पिशाचेश्वर महादेव का मंदिर भी कहते हैं। घोड़े जात्रा के दिन इस मंदिर में पूजा अर्चना करने की परंपरा भी है। लुकुवा महादेव को पिशाच चतुर्दशी के दिन जमीन के अन्दर से निकालकर नहलाते हैं, फिर इनको तामसी भोग जैसे मांस, मदिरा लहसुन और प्याज आदि चढाते हैं।
घोड़े जात्रा के पश्चात लहसुन खाने योग्य नहीं रहता है यह किवदंती आज भी जीवित है।
पुराने समय में नेपाल में घोडे जात्रा कैसे मनाया जाता था?
पुराने समय में घोड़े जात्रा आज के जैसे नहीं मनाया जाता था। तबेलों से घोड़े लाकर सीधे दौड़ाया जाता था। राजा महाराजा लोग सीधे भद्रकाली देवी के मंदिर में दर्शन करते थे।
मंदिर में दर्शन के लिए राजा घोड़ों में बैठकर जाते थें, दरबारी और मंत्रीयों का काफिला उनके पीछे – पीछे चलता था। राजा के यात्रा का दर्शन करने के लिए आम जनता टुंडीखेल के मैदान में इकट्ठे होते थे।
इस तरह राजा महाराजाओं के घोडा यात्रा के पश्चात काठमाडू में घोड़े जात्रा की प्रथा शुरू हुई।
घोड़े जात्रा का पौराणिक रूप भक्तपुर जिले के पाटन में बालकुमारी मैदान में आज भी देखने को मिलता है। घोड़े जात्रा में धीरे-धीरे विभिन्न प्रकार के मनोरंजनात्मक क्रियाकलाप जुड़ते गए । घोड़े जात्रा की तैयारी बहुत दिन पहले से ही किया जाता है।
घोड़े जात्रा में मुख्य आकर्षण क्या है ?
घोड़े जात्रा का मुख्य आकर्षण घोड़े,साइकिल और मोटर साईकिल का रेस की प्रतियोगिता है। इसके आलावा विभिन्न प्रकार के खेल, तमाशा, युद्ध का प्रदर्शन, सर्कस दिखाया जाता है। नेपाल आर्मियों द्वारा हेलीकाप्टर से विभिन्न तरह के रोचक कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता है।
घोड़े जात्रा देखने वालों की काफी भीड़ रहती है। घोड़े जात्रा में साधारण जनता साईकिल और मोटरसाइकिल रेस में भाग लेते हैं। इसी प्रकार विभिन्न खेल में महिलाएं भी भाग लेती हैं।
घोड़े जात्रा में कौन-कौन विशिष्ट अतिथि उपस्थित रहते हैं?
टूडीखेल के मंच में नेपाल के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रियों सहित विदेश के प्रतिनिधि तथा उच्च पद वाले सरकारी कर्मचारी और साधारण जनता की अच्छी खासी उपस्तिथि रहती है।
नेपाल में घोडे जात्रा की शुरुआत कब और किसने किया था ?
घोड़े जात्रा की अपनी अलग मान्यता तथा महत्व है। घोड़े जात्रा की शुरुआत नेपाल में मल्लकाल में हुई थी। उस समय के मल्ल राजा श्री जयप्रकाश मल्ल ने इस तरह के रिवाज की शुरुआत किया था।
नेपाल में घोडे जात्रा कहां कहां मनाया जाता है?
घोड़े जात्रा काठमांडू घाटी के तीन शहरों में भव्य रूप से मनाया जाता है। काठमांडू के टुंडिखेल मैदान में, ललितपुर के पाटन बालकुमारी और भक्तपुर दरबार परिसर घोडे जात्रा मनाया जाता है। घोड़े जात्रा में नेवार समुदाय के लोग विशेषकर शादी कर चुकी बेटियों को भंडारे खिलाते हैं।
यह त्योहार तीन दिनों तक मनाया जाता है। अन्तिम दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन मातृका देवी की 7 डोलियों को पूरे शहर में परिक्रमा करवा कर 6 गलियों से गुजरते हुए असन चौक में मिलते हैं। इस चौक में देवी की डोलियों को नचाते हैं।
इस संपूर्ण कार्य को सप्त मातृकाओं का एक दूसरे को भेंट नमस्कार करना माना जाता है।
यह त्योहार नेवार समुदाय की अपनी गरिमा और अस्तित्व को बरकरार बनाए रखती है। इससे स्पष्ट होता है, नेवार समुदाय का कला और कौशल विकास का। इसलिए नेवार समुदाय इस पर्व को बडी धूमधाम से मनाते हैं।
नेपाल के हिन्दू धर्मावलंबी अपने पुर्वजों के प्रति उदारता और कृतज्ञता व्यक्त करने वाले घोडे जात्रा को सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मनाते हैं।
नेपाल के किसान लोग भी घोडे जात्रा में आनन्द मनाते हैं। नेपाल में हास्य-व्यंग्य करके लोग कहते है, घोडे जात्रा में गरिब किसान भी जंग बहादुर का घोडा खरीद सकता है। नेपाल में प्रत्येक वर्ष घोडे जात्रा इसी तरह बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
FAQ
Q. घोडे जात्रा नेपाली में क्यों मनाया जाता है?
Ans- प्राचीनकाल में काठमांडू में बुरी आत्माओं ने मनुष्यों को परेशान किया था। उन बुरी आत्माओं दबाने के लिए राजा महाराजाओं ने घोडा दोडाया था तब से नेपाल में घोडे जात्रा मनाया जाता आ रहा है।
Q. नेपाल में पहली बार घोड़े जात्रा की शुरुआत किसने की थी?
Ans- नेपाल में मल्लकाल के समय तत्कालीन मल्ल राजा जयप्रकाश मल्ल ने घोडे जात्रा की शुरुआत किया था।
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