नेपाल की सीमाए अभी ओझल में हैं। नेपाल की सीमाओं को गायब किया गया है। नेपाल की सीमओं को ओझल में नहीं रखना चाहिए क्योंकि सीमा हरेक राष्ट्र की संवेदनशील अंग होती है। अगर एक वर्ग किलोमीटर भूमि का अतिक्रमण होता है तो उस क्षेत्र में रहने वाले नेपाली नागरिक विदेशी हो जाते हैं।
आने वाले समय में लगातार 5 वर्ग किलोमीटर, 10 वर्ग किलोमीटर इसी प्रकार हजारों वर्ग किलोमीटर नेपाल की भूमि अतिक्रमण होगी। नेपाल सरकार में उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों को तनिक भी चिंता नहीं है।
इसलिए वे लोग इस विषय को प्राथमिकता ही नहीं देते हैं। एसा नहीं है कि नेपाल सरकार में जो भी उच्च पदाधिकारी बनता है इस बात का उन्हें ज्ञान ही न हो, नेपाल के प्रत्येक वार्ड अध्यक्ष, नगर प्रमुख, विधायक, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति इत्यादि सब को यह बात मालूम है।
नेपाल हो या अन्य कोई देश जिसकी भी सीमाएं अतिक्रमण होती है उस देश का अस्तित्व ही संकट में पड जाता है। कोई भी व्यक्ति कुर्सी में बैठ जाने के बाद बोलने में असमर्थ हो जाता है। अपनी सत्ता गवाने के डर से वे लोग एसा करते हैं।
आज से 14 साल पहले,सन 2009 के दिसंबर महीने में एकीकृत माओवादी पार्टी ने भारत से सटे नेपाल की सीमाओं का जनजागरण अभियान चलाया था। उस समय डाक्टर बाबुराम भट्टराई सुस्ता में गए हुए थे।
जहाँ भारत द्वारा नेपाल की 14 हजार हेक्टेयर (22 हजार बीघा) भूमि का अतिक्रमण किया जा रहा था। उन्होंने अपनी पत्नी को साथ लेकर जोरदार भाषण भी दिया कि हमारी सुस्ता की भूमि का अतिक्रमण हुआ है और यह अतिक्रमण भारत ने किया है। इसका शांतिपूर्ण तरीके से समाधान होना चाहिए। लेकिन जब वे प्रधानमंत्री बने उन्होंने इसके बारे में एक शब्द भी नहीं बोला।
नेपाल की सीमा समस्या ओझल होने का क्या कारण है? क्या नेपाल सरकार ही इसकी जिम्मेदार है या इसका कोई और कारण है?
यह नेपाल सरकार और भारत सरकार के बीच का मामला है। मिडिया तथा जनता के आवाज उठाने से मात्र सीमा विवाद के समस्या का समाधान नहीं हो सकता है। मीडिया और जनता का कार्य केवल इतना ही है, कि सरकार को सीमा अतिक्रमण की जानकारी देना और अंतराष्ट्रीय सीमा सिद्धांत की जानकारी देकर दोनों देशों के बीच किस तरह से समझौता किया जा सकता है ? यह मार्ग दिखाना।
लेकिन इसकी पहल करना दोनों देशों के बीच समझौता करना यह कार्य सरकार के उच्च पद में बैठे पदाधिकारियों का है।
कुर्सी में बैठ जाने के बाद नेपाल के कोई भी पदाधिकारी इस बारे में बात नहीं करना चाहते हैं। हमारा पडोसी देश भारत हम से न रूठ जाये इसकी चिंता नेता लोगो को ज्यादा रहती है, अपने देश की सीमाओ की चिंता नहीं। लोकतंत्र के बाद नेपाल में जितने भी प्रधानमंत्री हुए वो सब एसा ही करते आ रहे हैं।
जब वे अपने पद से हट जाते हैं तो नारा लगाते हैं कि देश की सीमा का अतिक्रमण हुआ है देश की सीमाओं को बचाना है। आने वाले चुनाव में इसी के बहाने जनता से वोट पाकर प्रधानमन्त्री बनना और इसके बाद इस विषय पर एक शब्द भी न बोलना। एसा कई बार होता आ रहा है नेपाल में।
एसा इसलिए है कि, हमारे पडोसी देश के सरकारी पदाधिकारी नाराज हो जायेंगे। फिर हमें कुर्सी से नीचे उतारेंगे, कोई तरकीब लगाकर इस्तीफा देने के लिए बाध्य करेंगे, हमारी सरकार गिराने के लिए कोई भूमिका खेलेंगे। इस दृष्टिकोण से नेपाल सरकार के उच्च पद पर चयनित हुए कोई भी पदाधिकारी इस विषय में बोलना नहीं चाहता है।
सीमा के विषय में न बोलने पर भी नेपाल में सरकार गिरती ही रहती है। हमारे नेता सरकार के उच्च पद में होने के बावजूद भी सीमा के विषय में क्यों बोलते नहीं हैं ?. इस बात का ध्यान नेपाली जनता को रखना चाहिए।
2019 में लिपुलेख लिम्पिया धुरा का 374 वर्ग किलोमीटर भूभाग भारत ने अपने कब्जे में ले लिया। नेपाल को बिना बताये नेपाल की भूमि लिपुलेख लिम्पिया धुरा से कैलाश मानसरोवर जाने वाला मार्ग निर्माण किया और फिर इसे अपने नक़्शे में शामिल कर लिया।
इस समय 8 जून को भारत ने अखंड भारत का नक्सा कहकर उसे अपने संसद भवन में लगा दिया है जिसमे नेपाल का लुम्बिनी सहित के भूभाग को अपना बताया है और इसे राजनितिक न मानकर सांस्कृतिक नक्सा समझने के लिए कहा है।
इसे जवाब में काठमांडू के मेयर बालेन शाह द्वारा ग्रेटर नेपाल का नक्सा अपने कार्यालय में लगाने पर भारत में घोर विरोध हो रहा है। इस कार्य को भी भारत राजनितिक न समझकर सांस्कृतिक ही समझे न लेकिन नहीं क्योंकि भारत पाने को बड़ा भाई मानता है। यह सरासर गलत है संयुक्त राष्ट्र संघ में नेपाल और भारत की हैसियत एक ही है भारत एक वोट डाल सकता है तो नेपाल भी एक वोट डाल सकता है।
31 मई को नेपाल के प्रधानमंत्री श्री पुष्पकमल दहाल प्रचंड जी भारत भ्रमण पर गए। उन्होंने भी नेपाल भारत सीमा विवाद के बारे में और लिपुलेख कालापानी के बारे में कोई बात नहीं उठाई। भारत से 30 मुर्रा भैंसे लेकर आ गए।
नेपाल का सीमा विवाद केवल भारत के साथ ही है या चीन के साथ भी है?
नेपाल का सीमा विवाद दोनों पडोसी देश चीन तथा भारत के साथ है। चीन के साथ सीमा विवाद को सुलझा लिया गया है। नेपाल तथा चीन का सीमा के बारे में समझौता सन 1960 में हुआ था। उस समय नेपाल के प्रधानमंत्री विश्वेश्वर प्रसाद कोइराला थे। उनके समय में सन 1961 में चीन के साथ सीमा संधि किया गया। नेपाल के राजा श्री 5 महेंद्र वीर विक्रम शाह देव और चीन के राष्ट्रपति श्री लीसाऊ ची ने उस संधि पत्र में हस्ताक्षार किया।
सन 1962 में सीमांकन का कार्य किया गया। उस समय सीमा स्तम्भ गाड़ने का कार्य किया गया। सीमांकन के दौरान नेपाल- चीन दोनों देशों के 32 स्थान पर चीन तथा नेपाल का सीमा विवाद हुआ। दोनों देश एक दुसरे को उनकी भूमि अतिक्रमण होने का दावा करने लगे। पौने एक वर्ष के अन्दर सम्पूर्ण विवाद का समाधान किया गया।
अंतराष्ट्रीय जगत में नेपाल और चीन एक ही है इनका सामान अधिकार है। संयुक्त राष्ट्र संघ में वोटिंग के दौरान नेपाल एक वोट दे सकता है तो चीन भी एक वोट दे सकता है। इसलिए चीन और नेपाल एक सामान है कोई छोटा बड़ा नही है। एक देश दुसरे देश की स्वाधीनता और सार्वभौमता में दखल नहीं दे सकता। इस प्रकार का सिद्धांत को मानकर समानता के आधार पर 32 जगहों का सीमा विवाद को सुलझाया गया।
माउन्ट एवरेस्ट को छोड़कर 31 स्थानों पर नेपाल चीन के निचले स्तर के संयुक्त तकनिकी समिति द्वारा समस्या का निराकरण किया गया। माउन्ट एवरेस्ट विवाद का समाधान प्रधानमंत्री के स्तर पर समाधान किया गया। 28 April 1960 में चाऊ यन लाइ नेपाल भ्रमण पर आये। काठमांडू सिंहदरबार के ग्यालरी बैठक में पत्रकार सम्मलेन करके माउन्ट एवरेस्ट के बारे में दोनों देशों के बीच विवाद था मैं चीन का प्रधानमंत्री कहता हूँ कि माउन्ट एवरेस्ट नेपाल का ही है।
उनकी घोषणा के पश्चात नेपाल और चीन के बीच का सीमा विवाद समाप्त हुआ। जटिल समस्या का समाधान प्रधानमंत्री स्तर पर हुआ। पत्रकार सम्मलेन में माउन्ट एवरेस्ट नेपाल का होने के घोषणा के पश्चात तत्कालीन नेपाली पत्रकर रमेशनाथ पांडे ने चीन के प्रधानमंत्री से प्रश्न किया कि महामहिम आपने एक दिन पहले चोक्लोंग में माउन्ट एवरेस्ट चीन का होने का दावा कर रहे थे, आज अपने किस कारण से छोड़ा?
तब चीन के प्रधानमंत्री चाऊ यन लाइ ने जवाब में कहा, पत्रकार महोदय नेपाल के प्रधानमंत्री श्री विश्वेश्वर प्रसाद जी चीन के भ्रमण पर आये हुए थे। नेपाली काजग में बनाये हुए हस्तलिखित नक़्शे हमको दिए थे। हमने भी चोम्लोंग में माउन्ट एवरेस्ट चीन का है कहकर नेपाल के प्रधानमंत्री को नक़्शे दिए थे। आपके प्रधानमंत्री के द्वारा दिए हुए जो डॉक्यूमेंट थे उनका हमने राजनितिक, कुटनीतिक, प्रशासनिक और प्राविधिक स्तर पर खूब अध्यन किया। चीन अंतिम में नेपाल के प्रधानमंत्री द्वारा दिए हुए नक़्शे जायज है इस निष्कर्ष पर पहुंचा तब मैंने घोषणा किया कि माउन्ट एवरेस्ट नेपाल का है।
उसके बाद नक्सा बना, सन 1963 में दोनों देशों के बीच में सीमा प्रोटोकॉल चार्टर में हस्ताक्षर हुए। इस पत्र को प्रत्येक 10 वर्ष में नवीनीकरण करते रहना पड़ता है।
नेपाल और चीन के बीच में सीमा विवाद हुए 32 स्थान कौन- कौन से हैं? नेपाल के हित में यह संधि हुई या नहीं?
चीन और नेपाल के बीच जमीन लेन देन का सिद्धांत अपनाया गया और साथ ही उस क्षेत्र में रह रही जनता को अपनी नागरिकता इच्छानुसार चयन करने का सिद्धांत भी अपनाया गया था। नेपाल और चीन बीच सीमांकन किया गया। सीमांकन करते वक्त नेपाली नागरिक का जमीन चीन में चला गया हो या चीनी नागरिक का जमीन नेपाल में आ गया हो तो
उनको किस देश की नागरिकता लेनी हो वे स्वयं इसका चुनाव करने का मौका था। इसके लिए एक वर्ष की अवधि प्रदान की गई थी। उदहारण के लिए यदि मेरा जमीन चीन में चला गया है तो मुझे एक वर्ष की अवधि के अन्दर यह मौका है कि या तो मैं चीन का नागरिक बन सकता हूँ या मैं नेपाल में ही रह सकता हूँ।
नेपाली लोग नेपाली नागरिक ही रहना चाहते हैं लेकिन उनकी जमीन चीन में चली गई है तो एसी स्थिति में क्या करें?
पहला मौका – एसी स्थिति में जमीन का हक अधिकार उनसे छीन जायेगा। अगर नेपाली लोग चीनी नागरिकता नहीं चाहते हैं। नेपाली नागरिक का चीन की तरफ गई हुई जमीन को एक साल के अन्दर बेचना होगा।
दूसरा मौका – यदि जमीन बिक्री नहीं हुई या उसे बेचने में असमर्थ हुए तो दोनों देश की स्थानीय अधिकारी बैठकर जमीन का मूल्याङ्कन कर उसका मुआवजा नेपाली नागरिकों को देने की व्यवस्था थी।
चीन और नेपाल के बीच सीमांकन करते समय कुछ समतल पशु चराने योग्य अच्छी नेपाली भू-भाग चीन में और कुछ चट्टान वाली तथा तेज ढलान वाली चीनी जमीन नेपाल में शामिल किया गया।
क्या दक्षिण का पडोसी देश भारत के साथ भी सीमा विवाद है?
भारत के साथ भी नेपाल का सीमा विवाद है। भारत से लगे नेपाल के 26 जिलों में से 22 जिलों में सीमा विवाद है। जिसको अभी तक नहीं सुलझाया गया है। भारत की तरफ से समय समय पर नेपाली की भूमि अतिक्रमण की जाती है इसके विषय में नेपाल के उच्च पद पर बैठे लोग बातचीत नहीं करते हैं। सीमा की सुरक्षा में भी नेपाल कमजोर है भारत अपनी सीमा में पर्याप्त रूप से अपनी सेना को लगाया हुआ है जबकि नेपाल ने एसा नहीं किया है। सीमा खुली है।
सुगौली संधि से पहले ग्रेटर नेपाल था, सुगौली संधि में खोया हुआ नेपाल का भूभाग फिर से वापिस मिलना चाहिए क्या यह संभव है?
सुगौली संधि में नेपाल का एक तिहाई भूभाग भारत में चला गया था अब यह फिर से वापिस नेपाल को मिलना चाहिए। ग्रेटर नेपाल संभव है। नेपाल ने ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ हमेशा के लिए संधि समझौता नहीं किया था। इसलिए नेपाल का वह भूभाग जो भारत में चला गया है फिर से नेपाल को वापस मिलना चाहिए।
उदहारण के लिए – चीन ने अपना हांगकांग ब्रिटिश से वापिस लिया। इसी प्रकार नेपाल को भी अपना जमीन वापिस मिलना चाहिए और यह संभव भी है।
चीन ने अपने देश का विकास कर समृद्ध बनने के बाद अपना जमीन हांगकांग वापिस पाया। इसी प्रकार नेपाल समृद्ध होने के बाद और सभी नेपाली नागरिक ग्रेटर नेपाल बनाने की बात समझ जाएँ तो जल्दी ही नेपाल को अपना खोया हुआ भूमि वापिस मिल जायेगा और नेपाल फिर से ग्रेटर नेपाल बन जायेगा। इसके लिए पहले नेपाल में राजनितिक स्थिरता और विकास की जरुरत है।
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