आज के इस पोस्ट में मैं आपको “मुक्तिनाथ कैसे जाएँ ?” के बारे में विस्तार से जानकारी दे रहा हूँ । इस पोस्ट को पढ़ लेने के बाद आपको वो सार्री जानकारी मिल जाएगी जिससे आप आसानी से मुक्तिनाथ की यात्रा कर सकेंगे । नेपाल प्राकृतिक सुन्दरता से भरपूर है , साथ ही यहाँ अनेकों धार्मिक स्थल तथा पर्यटकीय स्थल है, उनमे से मुक्तिनाथ हिन्दुओं और बौद्ध धर्मावलम्बियों का प्रमुख तीर्थ स्थल है ।
मुक्तिनाथ नेपाल के गण्डकी प्रदेश का हिमालयी जिला मुस्तांग में स्थित है । मुस्तांग जिले का जिला मुख्यालय जोमसोम है । यह तीर्थ स्थल समुन्द्र तल से 3800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है । मुस्तांग जिले के पूर्व में मनांग जिला, पश्चिम में डोल्पा जिला, उत्तर में चीन का तिब्बत और दक्षिण में म्याग्दी जिला है । निलगिरी हिमालय (7060 मीटर ऊँचा ) और धौलागिरी हिमालय (8166 मीटर ऊँचा ) को पार करने पर मुस्तांग जिला आता है इसलिए इस जिले को नेपाली में हिमाल पारी को जिल्ला अर्थात हिमालय से परे का जिला कहते हैं । निलगिरी और धौलागिरी के बिच में अवस्थित मुस्तांग जिले के बीचों बीच होकर काली गण्डकी नदी बहती है ।
मुक्तिनाथ मंदिर की विशेषता क्या है ?
मुक्तिनाथ मंदिर का निर्माण विक्रमी संवत 1871 (सन 1814) में हुआ था । तिमंजिले पैगोडा शैली में बना इस मंदिर की छत तांबे से निर्माण किया गया है । मुक्तिनाथ मंदिर के शिखर को पीतल से निर्मित है और इसमें सोना मढ़ा हुआ है । मुक्तिनाथ मंदिर हिन्दुओं और बौद्ध मार्गियों का साझा तीर्थ स्थल है । मंदिर के अन्दर प्रवेश करते ही ठीक सामने कमल के फुल में श्री मुक्तिनारायण जी चतुर्भुज रूप में पद्मासन में विराजमान तांबे से निर्मित एक मीटर ऊँची मूर्ति है।
मूर्ति के दाएँ श्री लक्ष्मी जी, बाएं श्री सरस्वती जी और आगे गरुड़ जी की मूर्ति नमस्कार मुद्रा में हैं । मंदिर में स्थित एक ही मूर्ति को हिन्दू और बौद्ध अलग-अलग तरह से पूजते हैं, हिन्दू मूल मूर्ति को भगवन श्री विष्णु के रूप में पूजते हैं वहीँ बौद्ध लोग भगवान बुद्ध का प्रतिक आर्यावलोकितेश्वर के रूप में पूजते हैं । मंदिर के अंदर नित्य पूजा करने वाले बौद्ध मार्गियों के पुजारी झुमा और हिन्दुओं के पुजारी ब्राह्मण (पण्डित) हैं ।
विष्णु पुराण और हिमवत खंड आदि पुराणों में इस क्षेत्र की महिमा का वर्णन किया गया है । मुक्तिनाथ की महिमा बहुत बड़ी है । यहाँ आकर स्नान कर इस तपस्थली के दर्शन मात्र से भी मुक्ति मिलती है, इसलिए इस क्षेत्र का नाम मुक्ति क्षेत्र होने का उल्लेख है। मंदिर परिसर के उत्तर पूर्व में गुप्त रूप से आई हुई मन्दाकिनी नदी तांबे के 108 गौमुखों से 108 धाराओं में अविरल बहती रहती है । ये धाराएँ जाकर कागबेनी में गण्डकी नदी में मिल जाती हैं उसके बाद गण्डक नदी काली गण्डकी हो जाती है ।
मुक्तिनाथ में 108 धाराओं में स्नान करने से जीवन में किये गए सारे पाप धुल जाते हैं, वहीँ पर दो कुंड भी है जिसे लक्ष्मी कुंड और सरस्वती कुंड (पाप कुंड और पूण्य कुंड कहते हैं । पाप कुंड में स्नान करने से सारे पाप मिट जाते हैं और पूण्य कुंड में स्नान से पूण्य प्राप्त होते हैं । इसके आलावा श्रद्धालु की आस्था इन 108 जल धाराओं में और 2 कुंडों में स्नान करके मुक्तिनाथ में पूजा करने से उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं ।
मुक्तिनाथ मंदिर के दक्षिणी पूर्वी भाग में गुम्बज शैली में ज्वालामाई देवी का मंदिर है । इस मंदिर के अंदर मिटटी और पत्थर से अटूट प्राकृतिक दीप प्रज्ज्वलित होती है । हाल ही में कुछ समय पहले एक दीप प्रज्ज्वलित नहीं हो रहा है यहाँ प्राकृतिक गैस का भंडार होने का अनुमान किया जाता है ।
मुक्तिनाथ मंदिर में प्राचीन नरसिंह गुम्बा, गुम्बा के अन्दर गुरु पद्यसंभव का मूर्ति है । वे तिब्बत जाते वक्त कुछ समय मुक्तिनाथ में ध्यान मग्न हुए थे । मुक्तिनाथ के पास पत्थर से बना हुआ शाक्यमुनि बुद्ध की प्रतिमा और भी गुम्बाएं हैं ।
मुक्तिनाथ का इतिहास
मुक्तिनाथ के सम्बन्ध में अनेकों पौराणिक कथाएं हैं , उन में से एक कथा इस प्रकार है । श्रीमद देवी भागवत पुराण के अनुसार एक बार भगवन शिव ने अपना तेज समुन्द्र में इससे जलंधर उत्पन्न हुआ । जालंधर शिव पुत्र होने के कारण भी शिव का विरोधी था । उसमे अपार शक्तियाँ थीं । इंद्र को पराजित कर जालंधर तीनों लोकों का स्वामी बन बैठा था यमराज भी इससे डरते थे ।
जलंधर में जितनी भी शक्तियां थीं उन सभी शक्तियाँ उसकी पत्नी वृंदा के पतिव्रता धर्म के कारण थी । इस कारण सभी देवी देवता मिलकर भी उसे हरा नहीं पा रहे थे । जलंधर को अपने शक्ति पर इतना अभिमान हो गया था की उसने अपनी पतिव्रता धर्म की अवहेलना कर देवताओं के विरुद्ध कार्य कर उनकी पत्नियों को सताने लगा ।
जलंधर को पता था उससे भी बड़ा कोई ब्रह्माण्ड में शकिशाली है तो वो हैं देवों के देव महादेव, जलंधर ने खुद को शक्तिमान के रूप में स्थापित करने के लिए पहले इंद्र को परास्त कर तीनों लोकों का स्वामी बन बैठा अब विष्णु लोक पर आक्रमण कर भगवान विष्णु को हराकर उनकी पत्नी देवी लक्ष्मी जी को छीनने की योजना बनाकर विष्णु लोक पहुँच गया । देवी लक्ष्मी ने जलंधर को समझाया हम दोनों जल से ही उत्पन्न हुए हैं इसलिए हम दोनों भाई-बहन हैं । ये बात जलंधर ने मान ली लक्षी जी को बहन बनाकर वहां से चला गया ।
इसके बाद कैलाश पर आक्रमण करने के लिए सभी दैत्य इकठ्ठे कर माता पार्वती जी को पत्नी बनाने के उद्देश्य से कैलाश की ओर चल दिया । माता पार्वतीजी को क्रोध आ गया, उसके बाद भगवान शिव ने जलंधर से भीषण युद्ध किया । जलंधर की पत्नी वृंदा के वतिव्रता धर्म के शक्ति के कारण जलंधर भगवान शिव के हर प्रहार को निष्फल कर देता था । सभी देवताओं ने योजना बनाई भगवान विष्णु जी ने जलंधर का रूप धारण कर वृंदा के पास गए ।
वृंदा ने भगवान विष्णु को नहीं पहचाना और पत्नी का व्यवहार करने लगी इससे उसका पतिव्रता धर्म टूट गया इसके बाद भगवान शिव ने जलंधर का संहार किया । जब यह बात वृंदा को पता लगी तो उसने भगवान विष्णु को शिला (पत्थर) होने का श्राप दे दिया और स्वयं सती हो गई । जहाँ वृंदा भस्म हुई थी उसी राख में तुलसी का पौधा उग आया और भगवान विष्णु ने कहा हे वृंदा तुम अपनी सतीत्व के कारण मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो अब से तुम मेरे साथ सदा तुलसी के रूप में रहोगी । इसलिए भगवान विष्णु तब से शालिग्राम के रूप में मुक्तिनाथ में रहते हैं ।
इसके आलावा मुक्तिनाथ के सम्बन्ध में नेपाल में अनेकों दन्त कथाएं हैं ।
मुस्तांग क्यों घूमना चाहिए ?
अधिकांश लोग मुक्तिनाथ मंदिर के दर्शन के लिए ही मुस्तांग आते हैं और दर्शन करके चले जाते हैं इसके आलावा मुस्तांग जिले कि क्या विशेषता है मैं आज वर्णन करता हूँ । काली गण्डकी के किनारे किनारे सुन्दर दृश्यों को निहारते हुए मुस्तांग जिले में कब पहुंचे समय का पता ही नहीं लगता है । यहाँ की जीवनशैली अद्भुत है मार्फा और टुकुचे लगायत के क्षेत्रों में रसीले सेबों से लदे हुए बगीचों का सुन्दर दृश्य दिखाई देते हैं ।
जोमसोम पहुँचने पर तेज हवा का झोंका , इसके मध्य में बर्फ पिघलकर आई हुई काली गण्डकी नदी, इसके किनारे डरावने पहाड़ और दक्षिण दिशा में सिर के ऊपर गगनचुम्बी निलगिरी हिमालय यहाँ आने वाले सभी पर्यटकों का दिल जित लेता है । इसी प्रकार भेड़ बकरियों का झुण्ड यहाँ आने वाले आंतरिक और वाह्य पर्यटकों के लिए आकर्षण करते हैं ।
मुस्तांग के उत्तर में दिखने वाले हिमालय जोमसोम पहुँचने पर दक्षिण की तरफ दिखाई देते है । प्रातः चारों ओर हिमालय ही हिमालय दिखाई देते हैं प्रातःकाल की सूर्य की किरण हिमालय की चोटियों पर पड़ने से चांदी की तरह चमक पड़ते हैं, एसे में हिमालय का नजारा आहा अनुभव करने के लिए यहाँ पहुंचना ही पड़ता है ।
मुक्तिनाथ से आगे बढ़ने पर जितनी उचाई पर पहुंचे उतना ही अलग अलग रंग के पहाड़ हिमालय और काली गण्डकी के बगर (तटों) सुन्दर दृश्य दिखाई देते हैं ।
मुस्तांग जिले के अन्य पर्यटन स्थल कौन- कौन से हैं ?
मुक्तिनाथ के आलावा मुस्तांग जिले में अनेकों पर्यटन स्थल हैं – दामोदर कुंड, निलगिरी हिमालय, धौलागिरी हिमालय, टिटी ताल, ढुम्बा ताल, तिलिचो ताल, ठिनी घरपोझोंग गढ़, तिलिचो बेस कैंप, कैसांग कैंप (खम्पा क्याम्पु), थारुघांग व्यूटावर , तातोपानी कुंड,फुक्केलिंग पुरानो गाँव , और रॉक क्लाइम्बिंग आदि हैं ।
मुक्तिनाथ दर्शन के लिए विशेष दिन
यहाँ दर्शन विशेष रूप से दशहरा, ऋषितर्पनी, चैत्राष्टमी, रामनवमी, आदि हैं इन दिनों में श्रद्धालु भारी संख्या में यहाँ आते हैं और भगवान् मुक्तिनाथ के दर्शन कर अपनी मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं।
मुक्तिनाथ कैसे पहुंचे ? यात्रा की तैयारी
मुक्तिनाथ की यात्रा के लिए स्थल मार्ग और हवाई मार्ग का प्रयोग किया जा सकता है। सबसे पहले हम भारत से आने वाले यात्रियों के लिए स्थल मार्ग की की जानकारी देता हूँ ।
1 – भारत से स्थल मार्ग से मुक्तिनाथ कैसे पहुंचे ?
1st Day ( पहला दिन )– काठमांडू न जाकर पोखरा से होते हुए मुक्तिनाथ की यात्रा करने वाले श्रद्धालु गण दिल्ली से गोरखपुर पहुंचे फिर वहां से सोनौली बॉर्डर को पार कर बेलहिया बस पार्क में आकर किसी बढ़िया होटल में रत्रिविश्रम कीजिये ।
2nd Day- बेलहिया से सीधे पोखरा के लिए बसें जाती हैं उनमे बैठकर आप पोखरा आयें । पोखरा फेवा झील के किनारे बसा हुआ सुन्दर शहर है । पोखरा में आप ताल बाराही मंदिर (जो फेवा ताल के बीचों -बीच है ) दर्शन कीजिये, डेविड फॉल, विन्ध्याबसिनी मंदिर का दर्शन, गुप्तेश्वर महादेव का दर्शन, सारंगकोट, महेन्द्र गुफा और चमेरो गुफा आदि का भ्रमण कर सकते हैं ।
3rd Day- पोखरा बागलुंग बस पार्क से प्रातः 7 बजे जोमसोम के लिए सीधी बस जाती है अगर आप से यह बस छुट जाये तो भी चिंता मत कीजिये पोखरा से म्याग्दी जिले के जिला मुख्यालय बेनी तक जाएँ फिर बेनी से सीधे जोमसोम जाएँ । बेनी से अधिकांश गाड़ियाँ प्रातःकाल में ही जोमसोम जाती हैं । यदि बेनी से भी सीधी बस नहीं मिलती है तो बेनी से आप सीधे मुस्तांग जिले के घांसा तक जाएँ फिर वहां से जोमसोम जाएँ यहाँ रत्रिविश्रम कीजिये ।
यात्रा सीजन में आंतरिक और बाह्य पर्यटकों की संख्या बढ़ने के कारण टिकट मिलना मुस्किल हो जाती है । इसलिए आपकी सुविधा के लिए मैंने उपरोक्त तरीका बताया है ।
4rth Day- जोमसोम से कागबेनी और मुक्तिनाथ के रानिपौवा तक गाड़ियाँ आसानी से मिल जाती हैं ।रानिपौवा पहुंचकर आप घोड़ों में या पैदल मुक्तिनाथ मंदिर तक पहुँच सकते हैं । घोड़ों में यात्रा करने पर 500 नेपाली रुपये शुल्क लगता है । पैदल आप 30 से 40 मिनट में मुक्तिनाथ मंदिर परिसर में पहुँच जायेंगे । मुक्तिनाथ का दर्शन कर आप वापस जोमसोम लौट जायेंगे । अगर लेट हो गए तो रानीपौवा में रुक सकते हैं बढ़िया बढ़िया होटल हैं । यहाँ अन्य जगहों के आलावा थोडा महंगा है ।
इसी प्रकार आप अपने घर लौट जाएँ
काठमांडू से आने वाले यात्रीगण के लिए –
पहला दिन – काठमांडू से मुक्तिनाथ जाने वाले यात्रीगण दिल्ली से काठमांडू भारत -नेपाल मैत्री बस द्वारा पहुंचे । भारत नेपाल मैत्री बस दिल्ली में मजनू के टीले में यात्री लेने प्रातः 5 बजे जाती है फिर प्रातः 6 बजे वापिस अंबेडकर टर्मिनल दिल्ली गेट पहुँचती है । सात बजे नेपाल के लिए प्रस्थान करती है । 25 – 26 घंटे में आप स्वयंभूनाथ, काठमांडू पहुँच जायेगें । बस का किराया 2500 – 3000 है ।
दूसरा दिन – काठमांडू के गोंगबू नया बस पार्क से जोमसोम के लिए रात्रि बस दिन के 1 बजे प्रस्थान करती है और अगले दिन प्रातः 11 बजे जोमसोम में पहुंचा देती है। काठमांडू से जोमसोम 375 KM है । बस मलेखु , मुग्लिन , पोखरा , बेनी, तातोपानी, घासा, कालोपनी और मार्फा से होते हुए जोमसोम पहुंचेगी । काठमांडू से बेनी तक सड़क अच्छी है बाकि जोमसोम तक सड़क कच्ची है ।
तीसरा दिन – जोमसोम से रानिपौवा तक सडक अच्छी है इसलिए यहाँ से 1.5 घंटे में रानिपौवा पहुंचा जा सकता है । जोमसोम से मुक्तिनाथ 22 किलोमीटर है। रानिपौवा से आप घोड़े में या पैदल जा सकते हैं ।
चौथा दिन – जोमसोम से काठमांडू वापसी के लिए जोमसोम से रात्रि बस दिन के 1 बजे प्रस्थान करती है और अगले दिन 9 बजे प्रातः गोंगबु बस पार्क काठमांडू पहुंचाती है । बस का किराया 2250 नेपाली रुपये (INR 1406.25) है ।
नेपाल के आंतरिक पर्यटक नेपाल के किसी भी शहर से काठमांडू या पोखरा के लिए निरंतर बसें चलती रहती है । आप उन बसों में बैठकर पोखरा या काठमांडू पहुंचें फिर वहाँ से जोमसोम और फिर मुक्तिनाथ जांएं ।
2- हवाई मार्ग से मुक्तिनाथ कैसे जाएँ ?
पहला पड़ाव – दिल्ली इंदिरागांधीअन्तराष्ट्रीय हवाई अड्डे से त्रिभुवन अन्तराष्ट्रीय हवाई अड्डा काठमांडू नेपाल के लिए नियमित उडान होती है । दिल्ली से नेपाल पहुँचने में 1 घंटा 50 मिनट का समय लगता है । दिल्ली से काठमांडू दोनों ओर (Round trip ) किराया INR 12,969 है ।
दूसरा पड़ाव – काठमांडू से जोमसोम प्लेन कभी कभार ही जाते हैं इसलिए काठमांडू से पोखरा जाना पड़ता है । काठमांडू से पोखरा जाने के लिए जहाज में 25 मिनट का समय लगता है और एक तरफ का किराया 3500 नेपाली रूपए (INR 2,187.5) है ।
तीसरा पड़ाव – पोखरा से जोमसोम विमानस्थल में तारा एयरलाइन के जहाज उड़ते हैं । पोखरा से जोमसोम पहुँचने में जहाज में 20 मिनट का समय लगता है । जहाज धौलागिरी और निलगिरी हिमालय के ऊपर से उड़ता है , काली गण्डकी नदी का सर्पिलाकार रूप में बहती हुई बड़ी मनमोहक लगती है । हिमालयों के सुन्दर नज़ारे आहा फ़रवरी मार्च का सीजन में तो बुरांश से लदे जंगल एक अलग ही प्रकार की लालिमा लिए खूबसूरती बिखेरते हैं । पोखरा से जोमसोम का हवाई किराया एक तरफ का 10,155 नेपाली रुपये (INR 6,346.875) है ।
चौथा पड़ाव – जोमसोम से जीप में बैठकर 1.5 घंटे में 22 किलोमीटर का सफ़र कर आप रानिपौवा पहुंचकर 30 – 40 मिनट पैदल चलकर मुक्तिनाथ धाम पहुँच जायेंगे । जोमसोम से रानी पौवा तक का किराया 500 नेपाली रुपये (INR 312.5) है । रानिपौवा से घोड़े में बैठकर जाना चाहें तो भी घोड़े का किराया 500 नेपाली रुपये है ।
वापसी आप अपने हिसाब से आ सकते हैं आप चाहे तो सड़क मार्ग से होते हुए पोखरा या काठमांडू आ सकते हैं ।
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यात्रा के दौरान कहाँ ठहरें ?
1 पोखरा – मुक्तिनाथ यात्रा करते समय हमको पहले पोखरा पहुंचना पड़ता है । पोखरा में फेला झील के किनारे दर्जनों होटल हैं जहाँ हम रात्रि विश्राम कर सकते हैं । पोखरा में हमको होटल में एक रात का किराया 1200 नेपाली रुपये (INR 750) से NPR 1500 (INR 937.5) के बढ़िया होटल मिल जाते हैं । खाने का प्रत्येक थाली का नेपाली 250 रुपये (INR 156.25) है ।
2 जोमसोम – पोखरा के बाद मुक्तिनाथ के लिए यात्रा कर रहे तीर्थ यात्री जोमसोम में रुकते हैं । जोमसोम में बढ़िया होटल NPR 1200 (इंडियन करंसी में 750 रुपये ) में मिल जाते हैं । यहाँ खाना थोडा महंगा है । प्रत्येक खुराक का 500 नेपाली रुपये (INR 312.5) है ।
3 रानिपौवा – रानिपौवा में दर्जनों होटल हैं अब तो फाइव स्टार होटल भी बन गए हैं । आप अपनी सुविधानुसार किसी भी होटल में रुक सकते हैं लेकिन मैं बजट यात्रियों के लिए जानकारी दे रहा हूँ, रानिपौवा में अच्छे कमरे 1200 – 1500 नेपाली रुपये में मिल जाते हैं । खाना का खुराक यहाँ भी 500 ही है ।
मुक्तिनाथ में मोबाईल नेटवर्क और इंटरनेट सुविधा क्या है ?
वैसे तो नेपाल में आजकल हर जगह पहाड़ों में मोबाईल और इन्टरनेट सुविधा है, लेकिन मुक्तिनाथ के यात्रा के दौरान कहीं कहीं पर मोबाईल का सिग्नल नहीं आता है । इसलिए आप अपने मोबाइल में ऑफलाइन गूगल मैप डाउनलोड कर के ले जाएँ । अपने पास 2 सिम खरीदकर रखियेगा नमस्ते का और एनसेल का , क्योंकि जहाँ पर जिस सिम की नेटवर्क काम करे उसी से संचार कीजियेगा । मुक्तिनाथ के होटलों में फ्री वाई फाई की सुविधा तो होती है लेकिन गति एकदम धीमी होती है ।
मुक्तिनाथ का तापमान और मौसम कैसा है ?
मुक्तिनाथ समुन्द्र तल से 3800 मीटर की ऊंचाई पर होने के कारण यहाँ दिनका तापमान 1 डिग्री रहता है तो वहीँ रात का तापमान -5 तक रहता है इसलिए यहाँ आने वाले यात्री अपने साथ गरम गरम कपडे लेकर आयें क्योंकि यहाँ ठण्ड बहुत लगती है । नवम्बर, दिसम्बर और जनवरी में यहाँ भारी बर्फवारी होती है इसलिए इस समय बहुत ठंडा होता है ।
मुक्तिनाथ की यात्रा करने का अच्छा समय कब है ?
पहला सीजन – मार्च, अप्रैल और मई
मुक्तिनाथ यात्रा करने के लिए अच्छा समय सर्दी ख़त्म होकर गर्मी की शुरुआत में मार्च ,अप्रेल और मई है । क्योंकि इस समय नेपाल का राष्ट्रीय फूल बुरांश पहाड़ों के जंगलों में खिलता है। लाल -लाल बुरांश के फूलों से लदे जंगलों का मनमोहक दृश्य मन को लुभाते हैं । इस समय पहाड़ों में तापमान सामान्य रहता है ।
दूसरा सीजन -सितम्बर, अक्टूबर और नवम्बर
वर्षा ऋतू समाप्त होकर शरद ऋतू आने के मध्य सितम्बर, अक्टूबर में चारों ओर हरियाली छाई रहती है मौसम एकदम साफ़ होता है नीला आकाश और बर्फ से ढके हिमालयों की चोटियों के सुन्दर नज़ारे दिखाई देते हैं । यह नेपाल में पीक सीजन है न तो ठंडा होता है न ही गर्म मौसम सामान्य रहता है ।
मुक्तिनाथ की यात्रा किस समय नहीं करनी चाहिए ?
1 जून , जुलाई और अगस्त
इस समय नेपाल में भारी वर्षा होती है । पहाड़ी इलाकों में बड़े पैमाने पर भूस्खलन होती है । नदियों का जलस्तर बारिश के कारण बढ़ा हुआ होता है, इसलिए नदियाँ उफान पर होती हैं । इस समय मुक्तिनाथ की यात्रा करना जोखिम भरा कार्य है । इस लिए इस समय मुक्तिनाथ की यात्रा नहीं की जा सकती है ।
2 नवम्बर, दिसम्बर और जनवरी
मुक्तिनाथ 3800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है । नवम्बर , दिसम्बर और जनवरी में नेपाली के पहाड़ी और हिमालय क्षेत्रों में भारी बर्फ गिरती है । मुक्तिनाथ इस समय बर्फ से ढका हुआ होता है । इस सीजन में रानिपौवा में होटल और व्यवसाय करने वाले लोग भी वहां नहीं रुकते हैं । इसलिए इस समय मुक्तिनाथ की यात्रा नहीं की जा सकती है । कुछ लोग जोखिम उठाकर इस समय यात्रा करते हैं । मैं आपको एसा करने की सलाह नहीं दूंगा ।
मुक्तिनाथ किन लोगों को नहीं जाना चाहिए ?
बीमार लोगों को और जिनको दमा हो एसे लोगों को मुक्तिनाथ की यात्रा पर नहीं जाना चाहिए क्योकि 3800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मुक्तिनाथ क्षेत्र में आक्सीजन की कमी हवा का कम दबाब और ठण्ड ज्यादा है । अल्ट्रावाइलेट किरणें भी यहाँ ज्यादा मात्र में होती हैं ।सामान्य लोगों में से किसी – किसी को ऊंचाई पर तेज सिरदर्द , उलटी, खांसी , साँस लेने में तकलीफ इत्यादि लक्षण होते हैं ऐसे में आप पहले से ही बीमार हैं तो आपका स्वास्थ्य अधिक बिगड़ सकता है ।
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मुक्तिनाथ घुमने में कितना खर्च लगता है ?
मैं यहाँ एक व्यक्ति का भारत से मुक्तिनाथ घुमने में लगने वाले सम्पूर्ण खर्च के बारे में बताऊंगा । आप जितने भी लोग आ रहे हैं , उतने व्यक्ति का खर्च से गुणा कीजियेगा । जितना रूपया भी खर्च हो रहा है वो सब भारतीय करेंसी में है ।
गोरखपुर से पोखरा होते हुए मुक्तिनाथ जाने वाले यात्री का खर्चा
गोरखपुर से पोखरा होते हुए मुक्तिनाथ जाने वाले यात्री का सम्पूर्ण यात्रा व्यय इस प्रकार है ।
यातायात व्यय – बेलहिया से पोखरा 418.75 + पोखरा से जोमसोम 1062.5 + जोमसोम से रानिपौवा 312.6 + रानिपौवा से घोड़े में मुक्तिनाथ 312.6 = कुल यात्रा व्यय 2106.45
आने और जाने दोनों तरफ का किराया बनता है – 2106.45×2 = 4212.9
ठहरने का खर्च – पोखरा 937.5 + जोमसोम या रानिपौवा 937.5 = 1875
आते जाते वक्त होटल में ठहरने पर = 3750
खाने का खर्च – पोखरा में 2 खुराक 312 + जोमसोम या रानिपौवा में 4 खुराक 1250 = 1562
आते जाते वक्त खाने पर = 3124
मोबाईल सिम का खर्च – 500
इस प्रकार गोरखपुर से मुक्तिनाथ यात्रा के दौरान एक व्यक्ति का लगने वाला सम्पूर्ण खर्च 11,586.9 आपके सामने प्रस्तुत है । यह खर्च सिर्फ नेपाल के अंदर का ही बताया है । यह खर्चा बजट यात्रियों के लिए ही है । नेपाल में जाकर मंदिर में पूजा करके दान दक्षिणा कितना देना चाहते हैं और क्या क्या क्या खरीदना चाहते हैं यह आप पर निर्भर करता है इसलिए बजट बनाते समय अपने हिसाब से बनाये।
दिल्ली से काठमांडू और वहां से मुक्तिनाथ यात्रा करने वाले यात्रियों के लिए
भारत नेपाल मैत्री बस से दिल्ली से सीधे काठमांडू आकर वहां से मुक्तिनाथ जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए निम्न खर्च लगेगा
यातायात व्यय – दिल्ली से काठमांडू 2800 + काठमांडू से जोमसोम 1406 + जोमसोम से रानिपौवा 312 + रानिपौवा से मुक्तिनाथ मंदिर तक घोड़े में 312 =4,830
आने और जाने का कुल यात्रा व्यय = 4,830 x 2 = 9,660
ठहरने का खर्च – काठमांडू में दो रात 1 ,900 + जोमसोम या रानीपौवा में 937 = कुल होटल व्यय 2,837
खाने का खर्च – काठमांडू में 2 खुराक 312 + जोमसोम या रानिपौवा में 4 खुराक 1250 = 1562
मोबाईल सिम का खर्च – 500
इस प्रकार सड़क मार्ग से दिल्ली से काठमांडू होते हुए मुक्तिनाथ जाने वाले प्रत्येक यात्री का यात्रा व्यय 14,059 रुपये आता है ।
भारत से हवाई मार्ग द्वारा मुक्तिनाथ यात्रा करने वाले यातिर्यों के लिए
यातायात व्यय – दिल्ली से काठमांडू (राउंड ट्रिप )12,969 + काठमांडू से पोखरा (राउंड ट्रिप) 4,375 + पोखरा से जोमसोम ( राउंड ट्रिप ) 12,693.75
इस प्रकार कुल यातायात व्यय = 30,031.75
ठहरने का खर्च = काठमांडू 950 + जोमसोम या रानिपौवा 937 = कुल होटल व्यय 1,887
खाने का खर्च – काठमांडू में 2 खुराक 312 + जोमसोम या रानिपौवा में 4 खुराक 1250 = 1562
मोबाईल सिम का खर्च – 500
इस प्रकार हवाई मार्ग से यात्रा करने वाले प्रत्येक यात्री का मुक्तिनाथ घुमने का खर्च 33,980.75 है ।
नेपाल में समय समय पर गाड़ियों का किराया घटाया तथा बढाया जाता है इसलिए जब भी आप नेपाल यात्रा करेंगे बताये गए किराये से अलग किराया हो सकता है । होटल के कमरे भी आप अपनी इच्छानुसार चयन करेंगे तो बजट कम या ज्यादा हो सकता है ।
जब भी आप मुक्तिनाथ जाएँ अपने साथ गरम कपडे और कुछ औषधि लेकर जाना न भूले किसी किसी को ऊंचाई पर तकलीफ होती है । आप बीमार भी पड़ सकते हैं एसे में औषधि काम आएगी ।
इसके आलावा आप मुस्तांग जिले की सुन्दरता को फिल्मों में देखना चाहते हैं तो, कबड्डी -कबड्डी , प्रेमगीत और कागबेनी इत्यादि नेपाली फिल्मों में देख सकते हैं । आशा करता हूँ कि मुक्तिनाथ कैसे जाएँ? इस प्रश्न का उत्तर आपको मिल गया है मुक्तिनाथ कैसे जाएँ इसी के साथ मैं आज के लिए अपना कलम को यहीं पर विराम देता हूँ । मुक्तिनाथ यात्रा से सम्बंधित कोई भी प्रश्न आपके मन में है तो निसंकोच नीचे कमेन्ट में लिखिए मैं आपके प्रश्न का अवश्य जवाब दूंगा । धन्यवाद !
FAQ
Q-मैं भारत से मुक्तिनाथ कैसे जा सकता हूं?
Ans – दिल्ली से गोरखपुर, गोरखपुर से पोखरा और पोखरा से जोमसोम पहुंचकर मुक्तिनाथ जाएं
Q-मुक्तिनाथ के लिए कौन सा महीना सबसे अच्छा है?
Ans- सितम्बर, अक्टूबर, नवम्बर और मार्च, अप्रैल, मई।
Q-ज्यादातर लोग मुक्तिनाथ के दर्शन क्यों करते हैं?
Ans- हिन्दुओं और बौद्धों का पवित्र धार्मिक स्थल मुक्तिनाथ को मुक्ति क्षेत्र कहते हैं। कहते हैं यहां दर्शन कर मृत्यु उपरांत मोक्ष प्राप्त होता है।
Q-मुक्तिनाथ मंदिर की ऊंचाई कितनी है?
Ans- समुन्द्र तल से 3,710 मीटर।
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